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________________ ६६८ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५७६-५७७ भिन्न मुहूर्त हो है वा याको उत्कृष्ट अतर्मुहूर्त कहिए। यातें आगे दोय समय घाटि मुहूर्त आदि अंतर्मुहूर्त के विशेष जानने । इहां प्रासांगिक गाथा कहै है-- ससमयमावलिअवरं, समऊरणमुहत्तयं तु उक्कस्सं । मज्झासंखवियप्पं, वियारण अंतोमुत्तमिणं ॥ एक समय अधिक आवली मात्र जघन्य अंतर्मुहूर्त है । बहुरि एक समय घाटि मुहूर्त मात्र उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है। मध्य समय विर्ष दोय समय सहित आवली तै लगाइ, दोय समय घाटि मुहूर्त पर्यत असंख्यात भेद लीए, मध्य अंतर्मुहूर्त है । जैसे जानहु । दिवसो पक्खो मासो, उडु अयणं वस्समेवमादी हु। संखेज्जासंखज्जारणंताओ होदि ववहारो ॥५७६॥ दिवसः पक्षो मासः, ऋतुरयनं वर्षमेवमादिहि । संख्येयासंख्येयानंता भवंति व्यवहाराः ॥५७६॥ टीका - तीस मुहूर्त मात्र अहोरात्र है। मुख्यपनै पंचदश अहोरात्र मात्र पक्ष है । दोय पक्ष मात्र एक मास है । दोय मास मात्र एक ऋतु हो है । तीन ऋतु मात्र एक अयन हो है । दोय अयन मात्र एक वर्ष हो है । इत्यादि आवली ते लगाइ संख्यात, असंख्यात, अनंत पर्यंत अनुक्रम ते श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, केवलज्ञान का विषय भूत व्यवहार काल जानना । ववहारो पुण कालो, माणुसखेत्तम्हि जाणिदव्वो दु । जोइसियारणं चारे, ववहारो खलु ससाणो त्ति ॥५७७॥ व्यवहारः पुनः कालः, मानुषक्षेत्रे ज्ञातव्यस्तु । ज्योतिष्कारणां चारे, व्यवहारः खलु समान इति ॥५७७॥ टीका - बहुरि व्यवहार काल मनुष्य क्षेत्र विषै प्रगटरूप जानने योग्य हैं; जाते मनुष्यक्षेत्र विर्षे ज्योतिषी देवनि का चलने का काल अर व्यवहार काल समान है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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