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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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जिस परमाणू के आगे पीछे को कारण अँसा आकाश द्रव्य आकाश विषं अंसा कहिए है, जो यहु आकाश इस परमाणू के आगे है, यहु पोछे है, सो आकाश द्रव्य, तिस परमाणू करि जितना रुके, व्याप्त होइ, तिस क्षेत्र का नाम प्रदेश कह्या 1
आगे व्यवहार काल को कहै है --
श्रावलि संखसमया संखेज्जावलिसमूहमुस्सासो । सत्तुस्सासा थोवो, सत्तत्थोवा लवो भणियो ।। ५७४ ॥
श्रावलिरसंख्यसमया, संख्येयावलिसमूह उच्छ्वासः । सप्तोच्छ्वासाः स्तोकः, सप्तस्तोका लवो भरितः ॥ ५७४ ||
टीका - जघन्ययुक्तासंख्यात प्रमाण समय, तिनिका समूह, सो श्रावली है । बहुरि सख्यात प्रावली का समूह सो उश्वास है । सो उश्वास कैसा है ?
उक्त ं च---
अड्ढस्स अरगलसस्स य णिरुवहदस्स य हवेज्ज जीवस्स । उसासारिणस्सासो, एगो पाणो त्ति आहीदो ॥ १ ॥
जो कोई मनुष्य आढ्य-सुखी होइ, ग्रालस्य रोगादि करि रहित होइ, स्वा
धीन होइ, ताका सासोस्वास नामा एक प्राण कया है, बहुरि सात उस्वास का समूह, सो स्तोक नामा काल है । का समूह, सो लव नामा काल है ।
अट्ठत्तीसद्धलवा, नाली बेनालियो मुहुत्तं तु । एगसमयेण हीणं, भिण्णमुहुत्तं तदो सेसं ॥५७५॥
दिर्धलवा, नाली द्विनालिको मुहूर्तस्तु । एकसमयेन हीनो, भिन्नमुहूर्तस्ततः शेषः ||५७५ ॥
टीका का है । बहुरि दो
ताका काल जानना । बहुरि सात स्तोक का
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साढा अडतीस लवनि का समूह, सोनाली है । नाली नाम घटिका घटिका समूह, सो मुहूर्त है । इस मुहूर्त में एक समय घटाइये तब