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________________ ६३४ ] | गोम्मटसार जौनकाण्ड गाया ५४७ घटाइये, जो प्रमाण होइ, ताकी एक घाटि गुणकार कौ प्रमारण पंद्रह, ताका भाग दीजिए । बहुरि इहां आदि विषै पुष्कर समुद्र है । तिस विषै लवण समुद्र समान खंडनि का प्रमाण दोय कौ दोय बार सोलह करि गुणिए, इतना प्रमारण है, सोई मुख भया, ताकरि गुणिए, जैसे करतें एक घाटि जगत्प्रतर कौं दोय सोलह सोलह का गुणकार अर सात - सात पंद्रह का भागहार भया । बहुरि इस राशि का एक लवण समुद्र विषै जंबूद्वीप समान चौईस खंड हो है । तातै चौईसका गुणकार करना । बहुरि जम्बूद्वीप विषै सूक्ष्म क्षेत्रफल सात नव आदि अंकमात्र है । तातै ताका गुणकार करना बहुरि एक योजन के सात लाख अडसठ हजार अंगुल हो है । सो इहां वर्गराशि का ग्रहरण है, अर वर्गराशि का गुणकार भागहार वर्गरूप ही हो है । ताते दोय बार सात लाख अडसठ हजार का गुणकार जानना । बहुरि एक सूच्यंगुल का वर्ग प्रतरागुल हो है । ताते इतने प्रतरांगुलनि का गुणकार जानना । बहुरि - विरलिदरासोदो पुरण, जेत्तियमेत्तारिण होणरूवाणि । सोहवी, हारो उप्पण्णरासिस्स || इस कररणसूत्र के अभिप्राय करि द्वीप समुद्रनि के प्रमाण विषै राजू के अर्धच्छेदनि ते जेते अर्धच्छेद घटाए है, तिनिका आधा प्रमाण मात्र गुणकार सोलह कौ परस्पर गुण, जो प्रमाण होइ, तितने का पूर्वोक्त राशि विषे भागहार जानना । सो इहा जाका आधा ग्रहण कीया, तिस सपूर्ण राशि मात्र सोलह का वर्गमूल च्यारि, तिनको परस्पर गुणै, सोई राशि हो है । सो अपने अर्धच्छेद मात्र वानि को परस्पर गुणै तौ विवक्षित राशि होइ, अर इहा च्यारि कहै है, ताते तितने ही मात्र दोय बार, दूवानि को परस्पर गुणे, विवक्षित राशि का वर्ग हो है । ताते इहा लाख योजन का अर्धच्छेद प्रमाण दोय दूवानि का परस्पर गुणै, तौ लाख का वर्ग भया । एक योजन का अगुलनि के प्रमाण का अर्धच्छेदमात्र दोय दूवानि कौ परस्पर गुणे, एक योजन के अगुल सात लाख अडसठ हजार ( तीन का ) वर्ग भया । बहुरि मेरुमध्य सबंधी एक अर्धच्छेदमात्र दोय दूवानि को परस्पर गुणै, च्यारि भया, बहुरि सूच्यंगुल का अर्धच्छेदमात्र दोय दूवानि को परस्पर गुणे, च्यारि भया । बहुरि सूच्यगुल का अर्धच्छेद मात्र दोय दुवानि को परस्पर गुणै प्रतरागुल भया । जैसे ए भागहार जानने । बहुरि जलचर सहित तीन समुद्र गच्छ विषै घटाए है । तातै तीन बार गुणोत्तर जो सोलह, ताका भी भागहार जानना । जैसे जगत्प्रतर कौ प्रतरागुल अर दोय अर सोलह अर सोलह अर चौवीस अर सात से निवे कोडि छप्पन लाख चौराणवै हजार
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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