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________________ सम्यग्ज्ञानन्त्रिका भाषाटीका ] एक सौ पचास अर सात लाख अडसठि हजार, अर सात लाख अडसठि हजार का तो गुणकार भया । बहुरि प्रतरागुल पर सात अर सात अर पद्रह पर एक लास पर एफ लाख अर सात लाख अडसठि हजार अर सात लाख अडसठि हजार अर च्यारि पर सोलह अर सोलह अर सोलह का भागहार भया । इहा प्रतरागुल पर दोय वार सोलह अर दोय वार सात लाख अडसठि हजार गुणकार भागहार विपं समान देखि अपवर्तन कीएं अर गुणकार विर्ष दोय चौईस को परस्पर गुणे, अडतालीस पर भागहार विष पंद्रह सोलह, इनिकों परस्पर गुणे, दोय से चालीस, तहा अडतालीस करि अपवर्तन कीएं, भागहार विर्षे पाच रहे, असें अपवर्तन कीए, जो अवशेप प्रमाण रह्या ७६०५६६४१५० तहा सर्व भागहारनि को परस्पर गुणि, ताको गुणकारनि के ७। ७ । १ ल । १ ल । ४ । ५। अंकनि का भाग दीएं किछ अधिक बारह सै गुणतालीस भए। अस धनराशि विणे सर्व क्षेत्रफल साधिक 'धगरय' जो बारह सं गुणतालीस, ताकरि भाजित जगत्पतर प्रमाण क्षेत्रफल भया । इहां कटपयपुरस्थवर्णैः इत्यादि सूत्र के अनुसारि अक्षर तना करि धगरय शब्द ते नव तीन, दोय, एक जनित प्रमाण ग्रहण करना । अव हा एक प्रादि चौगुणा - चौगुणा ऋण कहा था, सो जलचर रहित समुद्रनि विपं ऋणरूप अंग्रफर ल्याइए है । 'पदमते गुण्यारे' इत्यादि करणसूत्र करि प्रथम गच्छमात्र गुमगार च्यारि का परस्पर गुणन करना । तहा राज के अर्धच्छेद प्रमाण का अर्धप्रमाण मात्र च्यारि को परस्पर गुणे, एक राजू हो है । कैसे ? सो कहिये है ___ सर्व द्वीप समुद्र का प्रमाण मात्र गच्छ कल्पे, इहा प्राधा प्रमाण है. तानं गुनकार च्यारि का वर्गमूल दोय ग्रहण करना । सो संपूर्ण गच्छ विष एक राज - च्छेद कहै है, तातै एक राजू के अर्धच्छेद प्रमाण दूवानि को परसर गुगे, पारा, प्रमाण भया, सो जगच्छणी का सातवां भाग प्रमाण है । यामे एक घटाएकोमा होइ, ताको एक घाटि गुणकार तीन का भाग दीजिए। वहरि पुष्कर ममु: मl आदि स्थान विर्षे प्रमाण सोलह, ताकरि गुरिणये, असे एक पाटि को सोलह का गुण कार बहुरि सात पर तीन का भागहार भया । नाम : चौवीस खंड अर जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल रूप योजननि का प्रमा] पर पर अंगुलनि का वर्गमात्र बहुरि सूच्यंगुल का इहां वर्ग है; तातं तनों : गुणन करना । बहुरि विरलिदरासीदो पुण, जेत्तियमेताणि हीपमालि। तेति प्रगोग्णहदी, हारो उप्पण्यरानिस्म ॥१॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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