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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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सुक्कस समुग्धादे, असंखभागा य सव्वलोगो य ।
शुक्लायाः समुद्घाते, असंख्यभागाश्च सर्वलोकश्च
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टीका इस आधा सूत्र करि शुक्ल लेश्या का क्षेत्र लोक के असंख्यात भागनि विषै एक भाग विना अवशेष बहुभाग प्रमाण वा सर्वलोक प्रमाण कया है, सो केवल समुद्घात अपेक्षा जानना । बहुरि उपपाद विषै मुख्यपने अच्युत स्वर्ग अपेक्षा एक जीव के प्रदेश छह राज लबे अर संख्यात सूच्यगुल प्रमाण चौडे वा ऊ चे प्रदेश हो हैं । सो इस क्षेत्रफल को अच्युत स्वर्ग विषै एक समय विषै सख्यात ही मरें, ताते तहां संख्यात ही उपजे, तातै संख्यात करि गुणै, जो प्रमाण भया, तितना उपपाद विषे क्षेत्र जानना । इहां भी पूर्वोक्त प्रकार पांच प्रकार लोक की अपेक्षा जैसा भागहार गुणकार सभव तैसे जान लेना; औसे शुक्ललेश्या विषं क्षेत्र कह्या । इहा छह लेश्यानि का क्षेत्र का वर्णन दश स्थान विषै कीया; तहा असा जानना । जो जिस अपेक्षा क्षेत्र का प्रमाण बहुत आवे, तिस अपेक्षा मुख्यपने क्षेत्र वर्णन कीया है । तहा संभवता अन्य स्तोक क्षेत्र अधिक जानि लेना, असे ही आगे स्पर्शन विषै भी अर्थ समभना । इति क्षेत्राधिकार |
स्पर्शनाधिकार साढा छह गाथानि करि कहै है
फासं सव्वं लोयं, तिट्ठार असुहले स्साणं ॥ ५४५॥
स्पर्शः सर्वो लोकस्त्रिस्थाने प्रशुभलेश्यानाम् ||५४५॥
टीका • क्षेत्र विषै तौ वर्तमानकाल विषै जेता क्षेत्र रोक, तिस ही का ग्रहण कीया । बहुरि इहा वर्तमान काल विषै जेता क्षेत्र रोकै, तीहि सहित जो प्रतीत काल विषै स्वस्थानादिक विशेषण को घरे जीव जेता क्षेत्र रोकि प्राया होइ, तिम ही का नाम स्पर्श जानना । सो कृष्णादिक तीन ग्रशुभ लेश्या का स्पर्श स्वस्थान वा समुद्घात विषै वा उपपाद विषै सामान्यपनै सर्व लोक जानना । विशेष पदा स्थानि विषै कहिए है । तहा कृष्णलेश्या वाले जीवनि के स्वस्थान स्वस्थान वेदना अर कषाय अर मरणातिक समुद्धात विषै वा उपपाद नि नर्व लोक प्रभाग स्पर्श जानना । बहुरि विहारवत्स्वस्थान विपे एक राजू लवा वा चांटा रात सूच्यगुल प्रमाण ऊंचा तिर्यग् लोक क्षेत्र हे । याका क्षेत्रफल सान सू