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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५४४
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बहुरि मध्य विषै लोक एक राजू चौडा, सो बघता बघता ब्रह्मस्वर्ग के निकट पाच राजू भया । सो इहां मुख एक राजू, भूमि पांच राजू मिलाए छह हुवा, ताका आधा तीन, बहुरि ब्रह्मस्वर्गं साढा तीन राजू ऊंचा, सो गच्छ का प्रमाण साढा तीन करि गुणिये, तब आधा ऊर्ध्व लोक का क्षेत्रफल साढा दश राजू हुआ । बहुरि ब्रह्मस्वर्ग के निकट पांच राजू सो घटता घटता ऊपरि एक राजू का रह्या, सो इहां भी मुख एक राजू, भूमि पाच राजू, मिलाए छह हुआ, आधा तीन, सो ब्रह्मस्वर्ग के ऊपरि लोक साढा तीन राजू है, सो गच्छ भया, ताकरि गुणै, आधा उर्ध्वं लोक का क्षेत्रफल साढा दश राज हो है । जैसे उर्ध्वलोक अर अधोलोक का सर्व क्षेत्रफल जोडै, जगत्प्रतर भया, सो असें लंबाई चौडाई करि तो जगत्प्रतर प्रमाण प्रदेश हो है । बहुरि बारह अंगुल प्रमाण उत्तर दक्षिण दिशा विषे ऊंचे हो है, सो जगत्प्रतर कौ बारह सूच्यंगुलनि करि गुणै, एक जीव संबंधी क्षेत्र बारह अंगुल गुणा जगत्प्रतर प्रमाण हो हैं । बहुरि इस समुद्घातवाले जीव चालीस हो है । तातै चालीस करि तिस क्षेत्र को गुण, च्यारि से अस्सी सूच्यंगुलनि करि गुण्या हुआ जगत्प्रतर प्रमाण उत्तराभिमुख स्थित कपाट विषं क्षेत्र हो है । बहुरि स्थिति विषै बारह अंगुल की ऊंचाई कही । उपविष्ट विषे तातें तिगुणी छत्तीस अंगुल की ऊंचाई है । तातें पूर्वोक्त प्रमाण ते तिगुणा चौदा से चालीस सूच्यंगुलनि करि गुण्या हूवा जगत्प्रतर प्रमाण उत्तराभिमुख उपविष्ट कपाट विषे क्षेत्र जानना । बहुरि प्रतर समुद्घातविषे तीन वातवलय बिना सर्व लोक विषै प्रदेश व्याप्त हो है । तातें तीन वातवलय का क्षेत्रफल लोक के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । सो यह प्रमाण लोक का प्रमाण विषै घटाए, अवशेष रहे, तितना एक जीव संबंधी प्रतर समुद्घात विषै क्षेत्र जानना ।
बहुरि लोक पूरण विषे सर्व लोकाकाश विषै प्रदेश व्याप्त हो है । ताते लोक प्रमाण एक जीव सबंधी लोक पूरण विषै क्षेत्र जानना । सो प्रतर पर लोक पूरण के बीस जीव तो करनेवाले अर बोस जीव समेटनेवाले से एक समय विषे चालीस पाइए । परन्तु पूर्वोक्त क्षेत्र ही विषै एक क्षेत्रावगाहरूप सर्व पाइए; ताते क्षेत्र तितना ही जानना | बहुरि दंड अर कपाट विषे भी बीस जीव करनेवाले बीस समेटनेवालेनि की अपेक्षा चालीस जीव है; सो ए जीव जुदे जुदे क्षेत्र को भी रोकै; तातै दण्ड अर कपाट विषै चालीस का गुणकार का । यह जीवनि का प्रमाण उत्कृष्टता की अपेक्षा है ।