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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५१२-५१३-५१४
टीका - निद्रा जाके बहुत होइ, और को ठिगना जाके बहुत होइ, धन-धान्यादिक विष तीन वांछा जाके होइ, असा संक्षेप ते नील लेश्यावाले का लक्षण है ।
रूसदि रिंगददि अण्णे, दूसदि बहुसो य सोय-भय-बहुलो । असुयदि परिभवदि परं, पसंसदि य अप्पयं बहुलो ॥५१२॥
रुष्यति निन्दति अन्यं, दुष्यति बहुशश्च शोकभयबहुलः ।
असूयति परिभवति परं, प्रशंसति आत्मानं बहुशः ॥५१२॥ टीका - पर के ऊपरि क्रोध करै, बहुत प्रकार और कौ निंदै, वहुत प्रकार और कौं दुखावै, शोक जाके बहुत होइ, भय जाकै बहुत होइ, और कौं नीकै देखि सकै नाही; और का अपमान कर, आपकी बहुत प्रकार बढाई करै ।
णय पत्तियदि परं, सो अप्पारणं यिव परं पि मण्णंतो । तुसदि अभित्थुवंतो, ण य जाणदि हाणिवदि वा ॥१३॥
न च प्रत्येति परं, स प्रात्मानमिव परमपि मन्यमानः ।
तुष्यति अभिष्टुवतो, न च जानाति हानिवृद्धी वा ॥५१३॥ टीका - आप सारिखा पापी - कपटी और को मानता संता और का विश्वास न करै, जो आपकी स्तुति करे, ताके ऊपरि बहुत संतुष्ट होइ, अपनी, अर पर की हानि वृद्धि को न जाने ।
मरणं पत्थेदि रणे, देहि सुबहुगं हि थुव्वमाणो दु। ण गणइ कज्जाकज्ज लक्खरगमेयं तु काउस्स ॥५१४॥३
मरणं प्रार्थयते रणे, ददाति सुबहुकमपि स्तूयमानस्तु ।
न गणयति कायाकार्य, लक्षणमेतत्तु कपोतस्य ॥५१४॥ टीका - युद्ध विष मरण की चाहै, जो आपकी बढाई करै, ताको बहुत धन देइ, कार्य-अकार्य को गिण नाही, असे लक्षण कपोत लेश्यावाले के हैं ।
१. पट्खडागम-धवला पुस्तक १, पृष्ठ ३६१, गाथा स. २०३ । २. पट्खडागम-धवला पुस्तक'१, पृष्ठ ३६१, गाथा स. २०४ । ३. पट्खडागम-धवला पुस्तक १, पृष्ठ ३६१, गाथा स. २०५।