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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ४६२-४६३-४६८ ओहिरहिवा तिरिक्खा, मदिरणाणिअसंखभागगा मणुगा। संखेज्जा हु तदूणा, मदिणाणी ओहिपरिमाणं ॥४६२॥
अवधिरहिताः तियंचः, मतिज्ञान्यसंख्यभागका मनुजाः ।
संख्येया हि तनाः, मतिज्ञानिनः अवधिपरमाणम् ॥४६२।। टीका - अवधिज्ञान रहित तिर्यच, मतिज्ञानी जीवनि की सख्या कही । तीहि के असंख्यातवे भाग प्रमाण है । बहुरि अवधिज्ञान रहित मनुष्य संख्यात है, ए दोऊ राशि मतिज्ञानी जीवनि की जो सख्या कही थी; तिसमै स्यों घटाइ दीएं जो अवशेष प्रमाण रहै, तितने च्यार्यो गति संबंधी अवधिज्ञानी जीव जानने ।
पल्लासंखघणंगुल-हद-सेढि-तिरिक्ख-गदि-विभंगजुदा । णर-सहिदा किंचूणा, चदुगदि-वेभंगपरिमाणं ॥४६३॥
पल्यासंख्यधनांगुलहतश्रेरिणतिर्यग्गतिविभंगयुताः।
नरसहिताः किंचिदूनाः, चतुर्गतिवैभंगपरिमारणम् ॥४६३॥ टीका - पल्य का असंख्यातवा भाग गुरिणत घनांगुल करि जगच्छेणी को गुरिगए, जो प्रमाण होइ, तितने तो तिथंच । बहुरि संख्याते मनुष्य । बहुरि घनांगुल का द्वितीय मूल करि जगच्छणी कौ गुणिए, तितना नारकीनि का प्रमाण है। तामै सम्यग्दृष्टी नारकी जीवनि का परिमाण घटाए, जो अवशेष रहै, तितना नारकी। बहुरि ज्योतिषी देवनि का परिमाण विष भवनवासी, व्यंतर, वैमानिक देवनि का परिमाण मिलाए, सामान्य देवराशि होइ । तामै सम्यग्दृष्टी देवनि का परिमारण घटाएं, जो अवशेष रहै, तितने देव, इनि सबनि का जोड दीए, जो प्रमाण होइ, तितने च्यार्यो गति सबधी विभगज्ञानी जानने ।
सण्णाण-रासि-पंचय-परिहीणो सव्वजीवरासी हु । मदिसुद-अण्णाणीणं, पत्तेयं होदि परिमाणं ॥४६४॥
सज्ज्ञानराशिपंचकपरिहीनः सर्वजीवराशिहि । मतिश्रुताज्ञानिनां, प्रत्येकं भवति परिमारणम् ॥४६४॥