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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ५७१ टीका - सम्यग्ज्ञान पांच, तिनिकरि संयुक्त जीवनि का परिमाण किछ अधिक केवलज्ञानी जीवनि का परिमाण मात्र, सो सर्व जीवराशि का परिमाण विर्ष घटाएं, जो अवशेष परिमाण रहै, तितने कुमतिज्ञानी जीव जानने । बहुरि तितने ही कुश्रुतज्ञानी जीव जानने ।
इति प्राचार्य श्रीनेमिचद्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पचसग्रह ग्रथ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम सस्कृतटीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञानचद्रिका नामा इस भाषा टीका विषै जीवकाड विष प्ररूपित जे वीस प्ररूपणा, तिनिविषै ज्ञानमार्गणा प्ररूपणा नामा
बारह्वा अधिकार संपूर्ण भया ।।१२।।