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[गोम्मटसार जीवकाए गाया ४१७ ५४८ ]
____टीका - परमावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद कहे, अग्निकाय की अवगाहना के भेदनि का प्रमाण ते अग्निकाय के जीवनि का परिमाण को गुरिणए, तावन्मात्र द्रव्य की अपेक्षा भेद कहे, सो एतावन्मात्र ही परमावधिज्ञान का विषयभूत क्षेत्र की अपेक्षा वा काल की अपेक्षा भेद है। जहां द्रव्य की अपेक्षा प्रथम भेद है, तहां ही क्षेत्र - काल की अपेक्षा भी प्रथम भेद है। जहा दूसरा भेद द्रव्य की अपेक्षा है, तहां क्षेत्र - काल अपेक्षा भी दूसरा ही भेद है। असे अंत का भेद पर्यंत जानना । बहुरि जघन्य तै लगाइ उत्कृष्ट पर्यंत एक एक भेद विष असंख्यात गुणा असख्यात गुणा क्षेत्र व काल जानना ।
कैसा असंख्यात गुणा जानना ? सो कहैं हैंशावलिअसंखभागा, इच्छिदगच्छदच्छधणमाणमेत्ताओ। देसावहिस्स खेत्ते, काले वि य होंति संवग्गे ॥४१७॥
आवल्यसंख्यभागा, इच्छितगच्छधनमानमात्राः।
देशावधेः क्षेत्रे, कालेऽपि च भवंति संवर्गे ॥४१७॥ टीका - परमावधिज्ञान का विवक्षित क्षेत्र का भेद विषै वा विवक्षित काल का भेद विष जो तिस भेद का संकलित धन होइ, तितना पावली का असंख्यातवां भाग मांडि, परस्पर गुणन कीया, जो प्रमाण होइ, सो विवक्षित भेद विषै गुणकार जानना । इस गुणकार करि देशावधि ज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र को गुणै, परमावधि विषै विवक्षित भेद वि क्षेत्र का परिमाण होइ, पर देशावधिज्ञान का उत्कृष्ट काल को गुण, विवक्षित भेद विष काल का परिमारण होइ ।
संकलित धन कहा कहिए -
जेथवां भेद विवक्षित होइ, तहां पर्यंत एक ते लगाइ एक एक अधिक अंक मांडि, तिन सब अंकनि कौं जोडें, जो प्रमाण होइ, सो संकलित धन जानना । जैसे प्रथम भेद विष एक ही अंक है । याके पहिले कोई अंक नाही । तातै प्रथम भेद विर्षे संकलित धन एक जानना । बहुरि दूसरा भेद विर्ष एक अर दूवा जोडिए, तब सकलित धन तीन भया । बहुरि तीसरा भेद विर्ष एक, दोय, तीन अंक जोडे, सकलित धन छह भया । बहुरि चौथा भेद विर्षे च्यारि और जोडे, सकलित धन दश भया ।