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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३९७-३१८-३९C
आगे जिस भेद विषै विस्रसोपचय रहित केवल मनोवर्गरणा को जाने है । तहां इनि पाच स्थानानि विषै क्षेत्र का प्रमाण असंख्यात द्वीप - समुद्र जानना । अर काल असख्यात वर्षमात्र जानना । पूर्वोक्त पंच भेद लीएं अवधिज्ञान असंख्यात द्वीप - समुद्र विपै पूर्वोक्त स्कध असंख्यात वर्ष पर्यंत अतीत, अनागत, यथायोग्य पर्याय के धारी, तिनिकौ जाने है । परि इतना विशेष है - जो इनि पंच भेदनि विषै पहिला भेद सबंधी क्षेत्रकाल का परिमाण है । तातै दूसरा भेद संबंधी क्षेत्रकाल का परिणाम ग्रसंख्यातगुणा है । दूसरे ते तीसरे का असंख्यात गुणा है । औसे ही पांचवां भेद पर्यंत जानना | सामान्यपने सब का क्षेत्र असंख्यात द्वीप - समुद्र र काल असंख्यात वर्ष कहे है, जातें असंख्यात के भेद घने है ।
तत्तो कम्मइयस्सिगिसमयपबद्धं विविस्ससोवचयं । धुवहारस्स विभज्ज, सव्वोही जाव ताव हवे ॥ ३६७॥
ततः कार्मणस्य, एकसमयप्रबद्धं विविस्रसोपचयम् । ध्रुवहारस्य विभाज्यं सर्वावधिः यावत्तावद्भवेत् ॥ ३९७॥
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टीका • तहा पीछे तिस मनोवर्गरणा को ध्रुवाहार का भाग दीजिए, मैसे ही भाग देते देते विस्रसोपचय रहित कार्माण का समय प्रबद्धरूप द्रव्य होइ । याकौं भी
बहार का भाग दीजिए । अँसे ही ध्रुबहार का भाग यावत् सर्वावधिज्ञान होइ, तहा पर्यंत जानना । विस्रसोपचय का स्वरूप योगमार्गणा विषै कया है, सो जानना ।
एदहि विभज्जंते, दुरिमदेसा वहिम्सि वग्गरणयं ।
चरिमे कम्मइयस्सिगिवग्गणमिगिवारभजिदं तु ॥ ३६८ ॥
एतस्मिन् विभज्यमाने, द्विचरमदेशावधौ वर्गणा ।
चरमे कार्मणस्यैकवर्गणा एकबारभक्ता तु ॥ ३९८ ॥
टीका इस कार्माण समय प्रबद्ध की ध्रुवहार का भाग दीएं सतै देशावधि का द्वि चरम भेद विषै कार्मारणवर्गणा रूप विपयभूत द्रव्य हो है; जातै ध्रुवहार मात्र वर्गणानि का समूह रूप समयप्रवद्ध है । वहुरि याकौ एक बार ध्रुवहार का भाग दीएं, चरम जो देशावधि का अत का भेद, तिस विपै विषयभूत द्रव्य हो है ।
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अगुलप्रसंखभागे, दव्ववियप्पे गये दु खेत्तम्हि | एगागासपदेसो, वढदि संपुष्णलोगो त्ति ॥ ३६६ ॥