________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
५३७
द्रव्य की अपेक्षा भेद है । जैसे ध्रुवहार का प्रमाण, वर्गणा गुणकार का प्रमाण, वर्गणा का प्रमाण हे शिष्य । तू जानि ।
देसोहिश्रवरदव्वं, धुवहारेणवहिदे हवे बिदियं । तदयादिबियप वि, संखबारो त्ति एस कमो ॥ ३६४ ॥
देशावध्यवरद्रव्यं, ध्रुवहारेणावहिते भवेद्वितीयं । तृतीयादिविकल्पेष्वपि, असंख्यवार इत्येष क्रमः ॥ ३९४ ॥ ।
टीका
देशावधिज्ञान का विषयभूत जघन्य द्रव्य पूर्वे का था, ताक
वहार का भाग दीए, जो प्रमाण होइ, सो दूसरा देशावधि के भेद का विषयभूत द्रव्य होइ । जैसे ही बहार का भाग देते देते तीसरा, चौथा इत्यादि भेदनि का विषयभूत द्रव्य होहि | असे असंख्यात बार अनुक्रम करना ।
――
असे अनुक्रम होते कहा होइ ? सो कहिए है
-
देसोहिमज्भभेवे, सविस्ससोवचयतेजक मंगं । तेजोभासमरणाणं, वग्गणयं केवलं जत्थ ॥ ३६५॥
पस्सदि ओही तत्थ, असंखेज्जाओ हवंति दीउवही । वासाणि असंखेज्जा, होंति असंखेज्जगुणिदकमा ॥ ३६६॥ जुम्मं ॥
देशावधिमध्यभेदे, सवित्र सोपचयतेजः कर्मागम् । तेजोभाषामनसा, वर्गरणां केवलां यत्र ॥ ३९५ ॥
पश्यत्यवधिस्तत्र, असंख्येया भवंति द्वीपोदधयः ।
वर्षाणि संख्यातानि भवंति असंख्यातगुणितक्रमाणि ॥ ३९६ ॥
टीका देशावधि के मध्य भेदनि विषै देशावधिज्ञान जिस भेद विपं विस्रसोपचय सहित तैजस शरीररूप स्कंध को जाने है । वहुरि तिस हो क्रम तं जिस भेद विषै विस्रसोपचय सहित कार्माण शरीर स्कंध को जाने है । बहुरि रहा तं श्रागे जिस भेद विषै विस्रसोपचय रहित केवल तैजस वर्गणा को जाने ह । बहुरि इहा ते आगे जिस भेद विप विस्रसोपचय रहित केवल भापावर्गरणा को जाने हैं। रहाते
―