________________
गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३९२-३६३
५३६ ]
आगै वर्गणा का परिमाण कहै है - वग्गणरासिपमाणं, सिद्धाणंतिमपमारणमत्तं पि । दुगसहियपरमभेदपमाणवहाराण संवग्गो ॥३६२॥
वर्गणाराशिप्रमाणं, सिद्धानंतिमप्रमाणमात्रमपि ।
द्विकसहितपरमभेदप्रमाणावहाराणां संवर्गः ॥३९२॥ टीका - कार्माणावर्गणा राशि का प्रमाण सिद्धराशि के अनंतवे भागमात्र है । तथापि परमावधिज्ञान के जेते भेद है, तिनमे दोय मिलाए, जो प्रमाण होइ, तितना ध्र वहार माडि, परस्पर गुणन कीयें, जो प्रमाण होइ, तितना परमाणूनि का स्कवरूप कार्माणवर्गणा जाननी । जाते कार्माणवर्गणा कौं एक बार ध्रुवहार का भाग दीएं, उत्कृष्ट देशावधि का विषय भूत द्रव्य होइ, पीछे परमावधि के जितने भेद है, तेती बार क्रम ते ध्रुवहार का भाग दीएं, उत्कृष्ट परमावधि का विषयभूत द्रव्य होइ, ताको एक बार ध्रुवहार का भाग दीए, एक परमाणू मात्र सर्वावधि का विपय हो है।
ते परमावधि के भेद कितने है ? सो कहिए है - परमावहिस्स भेदा, सग-ओगाहण-वियप्प-हद-तेऊ । इदि धुवहारं वग्गरणगुणगारं वग्गणं जाणे ॥३६।।
परमावधेर्भेदाः, स्वकावगाहनविकल्पहततेजसः ।
इति ध्रुवहारं वर्गणागुणकार वर्गणां जानीहि ॥३९३॥ टोका - अग्निकाय के अवगाहना के जेते भेद है; तिनि करि अग्निकाय के जीवनि का परिमारण को गुरणं, जो परिमाण होइ, तितना परमावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा भेद है । सो अग्निकाय की जघन्य अवगाहना का प्रदेशनि का परिमाण की अग्निकाय की उत्कृप्ट अवगाहना का परिमाण विष घटाए, जो प्रमाण होइ, तिनमे एक मिलाए, अग्निकाय की अवगाहना के भेदनि का प्रमाण हो है । सो जीवसमास का अधिकार विपै मत्स्यरचना करी है, तहा कहै ही है। बहुरि अग्निकाय का जीवनि का परिमारण कायमार्गणा का अधिकार विर्षे कहा है; सो जानना । इनि दोऊनि को परस्पर गुण, जो प्रमाण होइ, तितना परमावधिज्ञान का विषयभूत