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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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स्कंध भया, ताकौ द्रव्य की अपेक्षा तीसरा भेदवाला जानै । पर यह क्षेत्र की अपेक्षा तितना ही क्षेत्र को जाने; तातै द्रव्य की अपेक्षा तीसरा भेद भया । क्षेत्र की अपेक्षा प्रथम भेद ही है । असे द्रव्य की अपेक्षा सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण भेद होइ, तहां पर्यत जघन्य क्षेत्र मात्र क्षेत्र को जाने । तातै द्रव्य की अपेक्षा तौ सूच्यगुल का असख्यातवां भाग प्रमाण भेद भए, अर क्षेत्र की अपेक्षा एक ही भेद भया । बहुरि इहांसे आगे असे ही ध्रुवहार का भाग देते देते सूच्यंगुल का असख्यातवा भाग प्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद होइ, तहां पर्यंत जघन्य क्षेत्र ते एक प्रदेश बधता क्षेत्र को जाने, तहां क्षेत्र की अपेक्षा दूसरा ही भेद रहै ।
बहुरि तहा पीछे सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग मात्र, द्रव्य अपेक्षा भेदनि विर्ष एक प्रदेश और बधता क्षेत्र को जाने; तहां क्षेत्र की अपेक्षा तीसरा भेद होइ । जैसे ही सूच्यगुल का असंख्यातवा भाग प्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद होते होते क्षेत्र की अपेक्षा एक एक बधता भेद होइ, सो असे लोकप्रमाण उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र पर्यत जानना । तातै क्षेत्र की अपेक्षा भेदनि ते द्रव्य की अपेक्षा भेद सूच्यंगुल का असंख्यातवां भागप्रमाण गुण कह्या । बहुरि अवशेष पहला द्रव्य का भेद था; सो पीछे 'मिलाया, ताते एक का मिलावना कह्या है ।
तिन देशावधि के जघन्य क्षेत्र अर उत्कृष्ट क्षेत्रनि का प्रमाण कहै है - अंगुलअसंखभागं, अवरं उक्कस्सयं हवे लोगो। इदि वग्गरणगुणगारो, असंखधुवहारसंवग्गो ॥३६१॥
अंगुलासंख्यभागमवरमुत्कृष्टक भवेल्लोकः ।
इति वर्गणागुणकारोऽ, संख्यध्रुवहारसंवर्गः ॥३९१॥ टीका - जघन्य देशावधि का विषयभूत क्षेत्र सूक्ष्मनिगोद लब्धि अपर्याप्तिक की जघन्य अवगाहना के समान घनांगुल के असंख्यातवे भागमात्र जानना । बहुरि देशावधि का विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्र लोकप्रमाण जानना । उत्कृष्ट देशावधिवाला सर्वलोक विष तिष्ठता अपना विषय कौं जाने, असे दोय घाटि, देशावधि का द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद होइ, तितना ध्र वहार मांडि, परस्पर गुणन करना, सोई सवर्ग भया । यों करते जो प्रमाण भया होइ, सोई कार्माण वर्गणा का गुणकार जानना। सो कह्या ही था।