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। गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३८०
ऊंचाई का प्रमाण कौं, वेध कहिए।
प्रवृत्ति विष लबाई, ऊंचाई, चौडाई तीन नाम है। सो इनिका क्षेत्र, खंड विधान से समान प्रमाण करि क्षेत्रफल कीए, जो प्रमाण आवै, तितना क्षेत्रफल जानना । जघन्य अवधिज्ञान के क्षेत्र का अर जघन्य अवगाहना रूप क्षेत्र का क्षेत्रफल समान है, इतना तो हम जाने है । अर भुज, कोटि, वेध का प्रमाण कैसे है ? सो हम जानते नाही, अधिक ज्ञानी जाने ही हैं।
अवरोगाहणमारणं, उस्सेहंगुलप्रसंखभागस्स । सूइस्स य घणपदरं, होवि हु तक्खेत्तसमकरणे ॥३८०॥
अवरावगाहनमानमुत्सेधांगुलासंख्यभागस्य ।
सूचेश्च घनप्रतरं, भवति हि तत्क्षेत्रसमीकरणे ॥३८०॥ टीका - इहां कोऊ प्रश्न करै कि जघन्य अवगाहनारूप क्षेत्र का प्रमाण कहा, सो कैसाक है ?
ताका समाधान - जघन्य अवगाहना रूप क्षेत्र का आकार कोऊ एक नियम रूप नाहीं तथापि क्षेत्र, खंड विधान करि सदृश कीजिए, तब भुज का वा कोटि का वा वेध का प्रमाण उत्सेधांगुल को योग्य असंख्यात का भाग दीएं, जो एक भाग का प्रमाण होइ, तितना जानना । बहुरि भुज को वा कोटि कौ वा वेध कौ परस्पर गुण, घनागुल के असख्यातवे भागमात्र प्रकट क्षेत्रफल भया, सो जघन्य अवगाहना का प्रमाण है । याही के समान जघन्य अवधिज्ञान का क्षेत्र है। इहा क्षेत्र, खड विधान करि समीकरण का उदाहरण और भी दिखाइए है।
जैसे लोकाकाश ऊचाई, चौडाई, लबाई विष हीनाधिक प्रमाण लीए है । ताका क्षेत्रफल फैलाइए, तब तीन सै तेतालीस राज प्रमाण घनफल होइ, अर जो हीनाधिक को बधाइ, घटाइ, समान प्रमाण करि सात - सात राजू की ऊचाई, लंबाई, चौड़ाई कल्पि परस्पर गुणन करि क्षेत्रफल कीजिए। तब भी तीन सै तेतालीस ही राजू होइ । जैसे ही इहा जघन्य क्षेत्र की लबाई, चौड़ाई, ऊ चाई हीनाधिक प्रमाण लीएं है । परि क्षेत्र खंड विधान करि समीकरण कीजिए, तब ऊंचाई का वा चौड़ाई का वा लबाई का प्रमाण उत्सेधागुल के असंख्यातवे भागमात्र होइ ।