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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
{ ५१७ टीका - बहुरि प्रकीर्णक नामा अंगबाह्य द्रव्यश्रुत, सो चोदह प्रकार है। सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वदना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प्यव्यवहार, कल्प्याकल्प्य, महाकल्प्य, पुडरीक, महापुडरीक, निषिद्धिका।
तहां सं कहिए एकत्वपनै करि आयः कहिए आगमन पर द्रव्यनि ते निवृति होइ, उपयोग की आत्मा विर्षे प्रवृत्ति 'यहु मै ज्ञाता द्रष्टा हौ' अस आत्मा विष उपयोग सो सामायिक कहिए । जातै एक ही आत्मा सो जानने योग्य है; तातै ज्ञेय है । अर जानने हारा है, तातें ज्ञायक है । ताते आप को ज्ञाता द्रष्टा अनुभव है ।
अथवा सम कहिए राग-द्वेष रहित मध्यस्थ आत्मा, तिस विष आयः कहिए उपयोग की प्रवृत्ति; सो सामायिक कहिए, समाय है प्रयोजन जाका सो सामायिक कहिए । नित्य नैमित्तिक रूप क्रिया विशेष, तिस सामायिक का प्रतिपादक शास्त्र सो भी सामायिक कहिए ।
सो नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव भेद करि सामायिक छह प्रकार है।
तहां इष्ट - अनिष्ट नाम विर्ष राग द्वष न करना । अथवा किसी वस्तु का सामायिक जैसा नाम धरना, सो नाम सामायिक है।
बहुरि मनोहर वा अमनोहर जो स्त्री - पुरुषादिक का आकार लीए काठ, लेप, चित्रामादि रूप स्थापना तिन विर्ष राग - द्वेष न करना । अथवा किसी वस्तु विष यह सामायिक है, असा स्थापना करि स्थाप्यो हवा वस्तु, सो स्थापनासामायिक है । बहुरि इष्ट - अनिष्ट, चेतन - अचेतन द्रव्य विर्ष राग - द्वेप न करना । अथवा जो सामायिक शास्त्र की जान है अर वाका उपयोग सामायिक विपं नाही है, मो जीव वा उस सामायिक शास्त्र के जाननेवाले का शरीरादिक, सो द्रव्य सामायिक है।
बहुरि ग्राम, नगर, वनादिक इप्ट अनिष्ट क्षेत्र, तिन विप राग द्वेष न करना, सो क्षेत्र सामायिक है ।
बहुरि बसंत आदि ऋतु अर शुक्लपक्ष, कृष्णपक्ष, दिन, वार, नक्षम त्यादि इष्ट - अनिष्ट काल के विशेष, तिनिवि राग - द्वेप न करना, सो काल नागायिक