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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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बहुरि कर्म का है प्रवाद कहिए प्ररूपण, इसविषै औसा कर्मप्रवाद नामा ाठमां पूर्व है । इसविषै मूल प्रकृति, उत्तर प्रकृति, उत्तरोत्तर प्रकृतिरूप भेद लीए बध, उदय, उदीरणा, सत्ता रूप अवस्था को धरै ज्ञानावरणादिक कर्म, तिनिके स्वरूप को वा समवधान, ईर्यापथ, तपस्या, अद्य:कर्म इत्यादिक क्रियारूप कर्मनि कौ प्ररूपए है । याके दोय लाख ते निवै की गुरिए, जैसे एक कोडि अस्सी लाख (१८००००००) पद हैं ।
बहुरि प्रत्याख्यायते कहिए निषेधिए है पाप जाकरि, ऐसा प्रत्याख्यान नामा नवमां पूर्व है । इसविषै नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा जीवनि का संहनन वा बल इत्यादिक के अनुसार करि काल मर्यादा लीए वा यावज्जीव प्रत्याख्यान कहिए सकल पाप सहित वस्तु का त्याग ; उपवास की विधि, ताकी भावना, पाच समिति, तीन गुप्ति इत्यादि वर्णन कीजिए है । याके दोय लाख ते बियालीस कौ गुणिए, जैसे चौरासी लाख ( ८४००००० ) पद है ।
बहुरि विद्यानि का है अनुवाद कहिए अनुक्रमते वर्णन इस विषे असा विद्यानुवाद नामा दशमां पूर्व है । इसविषे सात से अगुष्ठ, प्रेत्ससेन आदि अल्पविद्या अर पाच से रोहिणी आदि महाविद्या, तिनका स्वरूप, समर्थता, साधनभूत मत्र, यंत्र, पूजा, विधान, सिद्ध भये पीछे उन विद्यानि का फल बहुरि अतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षरण, व्यजन, छिन्न ए आठ महानिमित्त इत्यादि प्ररुपिए । सो याके दोय लाख ते पचावन को गुणिए जैसे एक कोड दश लाख ( ११०००००० ) पद है ।
बहुरि कल्याणनि का है वाद कहिए प्ररूपण जाविषै औसा कल्याणवाद नामा ग्यारह्नां पूर्व है । इस विषै तीर्थकर, चक्रवति, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण इनके गर्भ आदिक कल्याण कहिए महा उच्छव बहुरि तिनके कारणभूत पोटश भावना, तपश्चरण आदिक क्रिया । बहुरि चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र इनिका गमनविशेष, ग्रहण, शकुन, फल इत्यादि विशेष वर्णन कीजिए है । याके दोय लाख तं नेह से कौ गुणिए से छब्बीस कोड ( २६०००००००) पद है ।
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बहुरि प्राणनि का है आवाद कहिए प्ररूपण इसविषै जैसा प्रारणावाद नामा बारां पूर्व है । इसविषै चिकित्सा आदि आठ प्रकार वैद्यक, अर भूतादि व्याधि दूर करने को कारण मत्रादिक वा विष दूरि कररणहारा जो जागुलिक, नाका कर्म वा