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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३६५-३६६
धर्मं भये । सो उन धर्मरूप परिणया वस्तु, सो भी नव प्रकार हो है । उपज्या, उपजै है, उपजैगा । नष्ट भया, नष्ट हो है, नष्ट होयगा । स्थिर भया, स्थिर है, स्थिर होगया । स नव प्रकार द्रव्य भया । इन एक एक का नव नव उत्पन्नपना आदि धर्म जानने । जैसे इक्यासी भेद लीये द्रव्य का वर्णन है । याके दोय लाख तें पचासको गुरिये, असा एक कोड (१०००००००) पद जानने ।
बहुरि कहिये, द्वादशांग विषै प्रधानभूत जो वस्तु, ताका अयन कहिये ज्ञान, सो ही है प्रयोजन जाका, औसा श्रग्रायणीय नामा दूसरा पूर्व है । इस विषै सात सै सुनय अर दुर्नय, तिनिका अर सप्त तत्त्व, नव पदार्थ, षद्रव्य इत्यादि का वर्णन है । याके दोय लाख ते अड़तालीस कौं गुणिये, असें छिनवै लाख ( ९६००००० ) पद है ।
बहुरि वीर्य कहिये जीवादिक वस्तु की शक्ति - समर्थता, ताका है अनुप्रवाद कहिये वर्णन, जिस विषै औसा वीर्यानुवाद नामा तीसरा पूर्व है । इस विषै आत्मा का वीर्य, पर का वीर्य, दोऊ का वीर्य, क्षेत्रवीर्य, कालवीर्य, भाववीर्य, तपोवीर्य इत्यादिक द्रव्य गुण पर्यायनि का शक्तिरूप वीर्य तिसका व्याख्यान है । याकौं दोय लाख तैं पैंतीस कौं गुणिये असे सत्तर लाख ( ७००००००) पद है ।
बहुरि अस्ति, नास्ति आदि जे धर्म तिनिका है प्रवाद कहिये प्ररूपण इस विषै असा अस्ति नास्ति प्रवाद नामा चौथा पूर्व है । इस विषे जीवादि वस्तु अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करि सयुक्त हैं । ताते स्यात् अस्ति है । बहुरि पर के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव विषै यह नाही है; तातै स्यान्नास्ति है । बहुरि अनुक्रम तें स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की प्रपेक्षा स्यात् अस्ति नास्ति है । बहुरि युगपत् स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा द्रव्य कहने में न आवे, तातें स्यात् अवक्तव्य है । बहुरि स्व द्रव्य, क्षेत्र काल भाव करि द्रव्य अस्ति रूप है । बहुरि युगपत् स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करि कहने मे आवै ताते स्यात् अस्ति अवक्तव्य है । बहुरि पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करि द्रव्य नास्तिरूप है । बहुरि युगपत् स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव करि द्रव्य कहने में न श्रावै; तातें स्यात्नास्ति वक्तव्य है । बहुरि अनुक्रम त स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा द्रव्य अस्ति नास्ति रूप है । अर युगपत् स्व पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा अवक्तव्य है; तातें स्यात् अस्ति - नास्ति अवक्तव्य है । असें जिस प्रकार अस्ति नास्ति अपेक्षा सप्त भेद कह है । तैसें एक-अनेक
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