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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ५११ धर्म अपेक्षा सप्त भग हो है । अभेद अपेक्षा स्यात् एक है। भेद अपेक्षा स्यात् अनेक है। क्रम तें अभेद भेद अपेक्षा स्यात् एक - अनेक है । युगपत् अभेद भेद अपेक्षा स्यात् अवक्तव्य है। अभेद अपेक्षा वा युगपत् अभेद-भेद अपेक्षा स्यात एक अवक्तव्य है। भेद अपेक्षा वा युगपत अभेद भेद अपेक्षा स्यात् अनेक अवक्तव्य है। क्रम ते अभेद - भेद अपेक्षा वा युगपत् अभेद - भेद अपेक्षा स्यात् एक - अनेक अवक्तव्य है। असे ही नित्य अनित्य नै आदि दे अनंत धर्मनि के सप्त भंग है। तहा प्रत्येक भंग तीन अस्ति, नास्ति, अवक्तव्य, अर द्विसंयोगी भंग तीन अस्ति नास्ति, अस्ति अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य, अर त्रिसंयोगी एक प्रस्ति - नास्ति - अवक्तव्य । इनि सप्त भंगनि का समुदाय सो सप्तभंगी सो प्रश्न के वश ते एक ही वस्तु विर्षे अविरोधपने सभवती नाना प्रकार नयनि की मुख्यता, गौरणता करि प्ररूपण कीजिए है । इहां सर्वथा नियमरूप एकांत का अभाव लीए कथंचित् असा है अर्थ जाका सो स्यात् शब्द जानना । इस अंग के दोय लाख ते तीस कौं गुरिणए सो साठि लाख (६००००००)
बहुरि ज्ञाननि का है प्रवाद कहिए प्ररूपण, जिस विष असा ज्ञानप्रवाद नामा पांचमां पूर्व है । इस विषे मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यय, केवल ए पांच सम्यम्ज्ञान अर कुमति, कुश्रुति, विभंग ए तीन कुज्ञान इनिका स्वरूप, संख्या वा विषय वा फल इत्यादि अपेक्षा प्रमाण अप्रमाणता रूप भेद वर्णन कीजिए है । याके दोय लाख तै पचास कौं गुण, एक कोटि होइ तिन में स्यों एक घटाइए असै एक घाटि कोडि (६६६६६६६) पद है। गाथा विष पंचम रूऊरण असा कहा है । तातै पाचमां अग में एक घटाया अन्य संख्या गाथा अनुसारि कहिए ही है ।
बहुरि सत्य का है प्रवाद कहिए प्ररूपण इस विष असा सत्यप्रवाद नामा छठा पूर्व है । इस विर्षे वचन गुप्ति - बहुरि वचन संस्कार के कारण, बहुरि वचन के प्रयोग, बहुरि बारह प्रकार भाषा, बहुरि बोलनेवाले जीवो के भेद, बहुरि बहुत प्रकार मृषा वचन, बहुरि दशप्रकर सत्य वचन इत्यादि वर्णन है । तहा असत्य न बोलना वा मौन धरना सो सत्य वचन गुप्ति कहिए ।
बहुरि वचन संस्कार के कारण दोय एक तौ स्थान, एक प्रयत्न । तहां जिनि स्थानकनि ते अक्षर बोले, जांहि ते स्थान आठ है - हृदय, कंठ, मस्तक, जिह्वा का मूल, दंत, नासिका, होठ, तालवा । जैसे अकार, क वर्ग, ह कार, विसर्ग इनिका कठ स्थान है असे अक्षरनि के स्थान जानने ।