________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ५०१
तहां द्रव्य करि धर्मास्तिकाय पर अधर्मास्तिकाय समान है । संसारी जीवनि करि संसारी जीव समान है। मुक्त जीव, करि मुक्त जीव समान है; इत्यादिक द्रव्य समवाय है ।
बहुरि क्षेत्र करि प्रथम नरक का प्रथम पाथडे का सीमंत नामा इंद्रकविला अर अढाई द्वीपरूप मनुष्यक्षेत्र, प्रथम स्वर्ग का प्रथम पटल का ऋजु नामा इंद्रक विमान अर सिद्धशिला, सिद्धक्षेत्र ये समान हैं । बहुरि सातवां नरक का अवधि स्थान नामा इंद्र विला अर जंबूद्वीप पर सर्वार्थसिद्धि विमान ये समान है इत्यादि क्षेत्र समवाय है ।
बहुरि काल करि एक समय, एक समय समान है । आवली आवली समान है । प्रथम पृथ्वी के नारकी, भवनवासी, व्यंतर इनिकी जघन्य आयु समान है । बहुरि सातवी पृथ्वी के नारकी, सर्वार्थसिद्धि के देव इनिकी उत्कृष्ट आयु समान है, इत्यादिक कालसमवाय है ।
बहुरि भाव करि केवलज्ञान, केवलदर्शन समान है । इत्यादि भावसमवाय है जैसे, इत्यादि समानता इस अंग विषे वरिणये है ।
बहुरि 'वि' कहिये विशेष करि बहुत प्रकार, श्राख्या कहिये गणधर के कीये प्रश्न, प्रज्ञाप्यंते कहिये जानिये, जिसविषै जैसा व्याख्याप्रज्ञप्ति नामा पाचवा अंग जानना । इस विषै औसा कथन है कि - जीव अस्ति है कि जीव नास्ति है, कि जीव एक है कि जीव अनेक है; कि जीव नित्य है कि जीव अनित्य है; कि जीव वक्तव्य है कि अवक्तव्य है इत्यादि साठि हजार प्रश्न गणधर देव तीर्थंकर के निकट कीये । ताका वर्णन इस अंगविषै है ।
बहुरि नाथ कहिये तीन लोक का स्वामी, तीर्थंकर, परम भट्टारक, तिनके धर्म की कथा जिस विषै होइ असा नाथधर्मकथा नाम छठा अग है । इसविषे जीवादि पदार्थनि का स्वभाव वर्णन करिए है । वहुरि घातिया कर्म के नाश ते उत्पन्न नश केवलज्ञान, उस ही के साथि तीर्थकर नामा पुण्य प्रकृति के उदय तै जाऊँ महिमा प्र भयी, असा तीर्थकर के पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न, अर्धरात्रि इनि च्यारि कालनिि छह छह घडी पर्यन्त बारह सभा के मध्य सहज ही दिव्यध्वनि होय है | बहुरि गणधर, इंद्र, चक्रवर्ति इनके प्रश्न करने ते और काल विपै भी दिव्यध्वनि हो है । ग्रेना दिव्यध्वनि निकटवर्ती श्रोतृजननि की उत्तम क्षमा यादि दश प्रकार वा रत्न