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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका 1
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प्रमाण जानना । सो कहिए है- असंख्यात लोकमात्र अग्निकायिक जीवनि का परिमाण ताकी यथायोग्य छोटा असंख्यात् लोक का भाग दीएं, जेता परिमाण आवै, तितने अग्निकायिक के जीवनि का परिमाण विषै मिलाये, पृथ्वीकायिक जीवनि का परिमाण हो है । बहुरि इस पृथ्वीकायिक राशि को असख्यात् लोक का भाग दीए, जेता परिमाण आवे, तितने पृथ्वीकायिक राशि विषै मिलाये, तितना अपकायिक जीवन का परिमाण हो है । बहुरि अपकायिक राशि को असंख्यात लोक का भाग दीए, जो परिमाण आवै, तितना अपकायिक राशि विषै मिलाए, वातकायिक जीवन का परिमाण हो है; से अधिक अधिक जानने ।
अपदिदिपत्तेया, असंखलोगप्पमारण्या होंति ।
तत्तो परिट्ठिया पुण, असंखलोगेण संगुणिदा ॥२०५॥
प्रतिष्ठित प्रत्येका, असंख्य लोकप्रसारणका भवंति । ततः प्रतिष्ठिताः पुनः असंख्यलोकेन संगुणिताः ।।२०५ ।।
टीका - अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतीकायिक जीव यथायोग्य असख्यात लोक प्रमाण है । बहुरि इनि को असंख्यात लोक करि गुणै, जो परिमाण होइ, तितने प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतीकायिक जीव जानने । दोऊनि को मिलाएं सामान्य प्रत्येक वनस्पतीकायिक जीवनि का प्रमाण हो है ।
तसरासिपुढविआदी, चक्कपत्तेयही संसारी |
साहाररणजीवाणं, परिमाणं होदि जिणदिट्ठ ॥ २०६ ॥
सराशिपृथिव्यादि चतुष्कप्रत्येकहीन संसारी ।
साधारण जीवानां परिमाणं भवति जिनदिष्टम् ॥ २०६ ॥
टीका- आगे कहिए है - श्रावली का असख्यातवा भाग करि भाजित प्रतरागुल का भाग जगत्प्रतर को दीए, जो होइ, तितना सराशि का प्रमाण र पृथ्वीप - तेज - वायु इनि च्यारिनि का मिल्या हूवा साधिक चौगुणा तेजकायिक राशि प्रमाण, बहुरि इस प्रतिष्ठित - अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती का मिल्या हूवा परिमाण, असे इनि तीन राशिनि को संसारी जीवनि का परिमाण मे घटाए, जो श्रवशेष रहै, तितना साधारण वनस्पती, जे निगोद जीव, जानना; असा जिनदेव ने कहा ।
तिनिका परिमाण अनंतानत