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________________ गोम्मटसार जीवाण्ड गाथा २०४ ३४२ ] है । ताहि करि शलाकाराणि मैं स्यो एक घटावना । वहुरि अँसे करते जो राशि उपज्या, ताहि विरलन करि एक-एक प्रति सोई राशि देड, वर्गितसवर्ग करि शलाकाराशि मै सौ एक और घटावना । जैसे लोक प्रमाण शलाका राणि यावत् पूर्ण होड तावत् करना । जैसे करते जो राशि उपज्या, तीहि प्रमारण शलाका, विरलन, देयराशि, स्थापि, विरलनराशि का विरलन करि, एक-एक प्रति देयराशि की देड, वर्गितसंवर्ग करि दूसरी बार स्थाप्या हूवा, शलाकाराणि में सी एक घटावना । वहुरि तहा उपज्या हूवा राशि का विरलन करि, एक-एक प्रति सोई राशि स्थापि वर्गितसंवर्ग करि, तिस शलाकाराशि मैं सो एक और घटावना । जैसे दूसरी वार स्थाप्या हूवा शलाकाराशि को भी समाप्त करि, तहा अंत त्रिपै जो महाराशि भया, तीहि प्रमाण शलाका, विरलन, देय, स्थापि; विरलनराशि का विरलन करि, एकएक प्रति देय राशि को देइ, वर्गितसंवर्ग करि, तीसरी बार स्थाप्या गलाकाराणि तै एक घटावना । वहुरि तहा जो राशि भया, ताका विरलन करि, एक-एक प्रति सोई राशि देइ, वर्गितसंवर्ग करि, तिस शलाकाराणि ते एक और काड़ना । जैसे तीसरी बार स्थाप्या हूवा शलाकाराणि को समाप्त करि, तहां अंत विपे उपज्या महाराशि, तिहि प्रमाण शलाका, विरलन, देय, स्थापि; विरलनराशि को दखेरि, एक-एक प्रति यराणि को देइ वर्गित संवर्ग करि, चौथी वार स्थाप्या हूवा शलाकाराणि ते एक काढ़ना । वहुरि तहां जो राशि भया, ताकौ विरलन करि, एक-एक प्रति तिस ही को देड़, वर्गित संवर्ग करि तिस शलाकाराणि मैं सौ एक और काढना । से ही क्रम करि पहिली वार, दूसरी वार, तीसरी बार जो स्यापे ालाकाराशि, निनिको जोड़ें, जो प्रमाण होइ, तितने चौथी बार स्थान्या हूवा शलाकाराणि मैं सो घटाएं, अवशेष जितना प्रमाण रह्या, तिनको एक-एक घटावने करि, पूर्ण होते अंत विषै जो महाराणि उपज्या, तीहि प्रमाण तेजस्कायिक जीवराशि है । इस राशि का परस्पर गुरणकार शलाकाराणि, वर्ग शलाकाराणि, ग्रर्द्धच्छेद राशि तिनिका प्रनारण वा अल्पवहुत्व पूर्व द्विरूप घनावन धारा का कथन करते कह्या है, तैसे इहां भी जानना । जैसे सामान्यपणे साढा तीन वार वा विशेषपणे किचित् घाटि, च्यारि गलाकाराशि, पूर्ण जैसें होड, तैसे लोक का परस्पर गुणन कीए, जो राशि होड, तितने ग्रग्निकायिक जीवराशि का प्रमाण है । बहुरि इनि ते पृथ्वीकायिक के जीव अविक हैं । इनि ते ग्रपकाय के जीव अधिक है । इनिते वातकाय के जीव अधिक हे । इहां अत्रिक कितने हैं ? सा जानने के निमित्त भागहार असंख्यात लोक
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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