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[गोम्मटसार जीवकाम गाथा १८५-१८६ ३२६ ] नाही। तात अतिशय रहित वस्तु का विचार विर्ष पूर्वोक्त शास्त्र का उपदेश ही वादर सूक्ष्म जीवनि का सिद्ध भया।
उदये दु वणप्फदिकम्मस्स य जीवा वणप्फदी होति । । पत्तेयं सामण्णं, पदिठिदिदरे त्ति पत्तेयं ॥१८॥
उदये तु वनस्पतिकर्मणश्च जीवा वनस्पतयो भवति ।
प्रत्येकं सामान्यं, प्रतिष्ठितेतरे इति प्रत्येकं ॥१८५॥ टीका - वनस्पती रूप विशेष कौं धरै स्थावर नामा नामकर्म की उत्तरोत्तर प्रकृति के उदय होते, जीव वनस्पतीकायिक हो है। ते दोय प्रकार - एक प्रत्येक शरीर, एक सामान्य कहिए साधारण शरीर । तहां एक प्रति नियम रूप होइ, एक जीव प्रति एक शरीर होइ, सो प्रत्येक-शरीर है। प्रत्येक है शरीर जिनिका, ते प्रत्येक-शरीर जीव जानने । वहुरि समान का भाव, सो सामान्य, सामान्य है शरीर जिनिका ते सामान्य-शरीर जीव है ।
भावार्थ- बहुत जीवनि का एक ही शरीर साधारण समानरूप होइ, सो साधारण-शरीर कहिए । असा शरीर जिनिकै होइ ते साधारणशरीर जानने । तहा प्रत्येक-शरीर के दोय भेद - एक प्रतिष्ठित, एक अप्रतिष्ठित । इहां गाथा विष इति शब्द प्रकारवाची जानना। तहां प्रत्येक वनस्पती के शरीर बादर निगोद जीवनि करि आश्रित संयुक्त होइ, ते प्रतिष्ठित जानने । जे वादर निगोद के आश्रित होंइ, ते अप्रतिष्ठित जानने ।
मूलग्गपोरबीजा, कंदा तह खंदबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया, पत्तेयाणंतकाया य ॥१८६॥
मूलाग्रपर्वबीजाः, कंदास्तथा स्कंधवीजवीजरुहाः ।
सम्मूछिमाश्च भरिणता, प्रत्येकानंतकायाश्च ।।१८६।। टोका - जिनिका मूल जो जड़, सोइ वीज होड, ते आदा, हलद आदि मूलवीज जानने । वहुरि जिनिका अग्र, जो अग्रभाग सो ही वीज होंइ ते आर्यक आदि अग्रवीज जानने । वहरि जिनिका पर्व जो पेली, सो ही वीज होंड, ते सांठा आदि पर्वबीज जानने । बहुरि कंद है, वीज जिनिका, ते पिंडालु, सूरणा आदि कंदवीज