________________
[ ३२७
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषा टीका ]
जानने । बहुरि स्क, जो पेड, सो ही है बीज जिनिका ते सालरि, पलास आदि स्कंध - बीज जानने। बहुरि जे बीज ही ते लगे ते गेहू, शालि आदि बीजरुह जानने । बहुरि जे मूल आदि निश्चित बीज की अपेक्षा ते रहित, आप आप उपजै ते सम्मूर्छिम कहिए, समततै भए पुद्गल स्कंध, तिनि विषै उपजे, असें दोब आदि सम्मूर्छिम जानने ।
असे एकहे ते सर्व ही प्रत्येक वनस्पती है । ते अनंत जे निगोद जीव, तिनके' काय ः ' कहिए शरीर जिनिविषै पाइए जैसे 'अनंतकायाः' कहिए प्रतिष्ठित प्रत्येक है । बहुरि चकार ते अप्रतिष्ठित - प्रत्येक है । जैसे प्रतिष्ठित कहिए साधारण शरीरनि करि आश्रित है, प्रत्येक शरीर जिनका ते प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर है । बहुरि तिनकरि आश्रित नाहीं है, प्रत्येक शरीर जिनिका, ते अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर है । से ए मूलबीज आदि संमूर्छिम पर्यंत सर्व दोय - दोय अवस्था लीएं जानने । बहुरि कोऊ जानेगा कि इनिविषै संमूछिम के तौ संमूछिम जन्म होगा, अन्यकै गर्भादिक होगा, सोनाही है । ते सर्व ही प्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीरी जीव संमूछिम ही है । बहुरि प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर की सर्वोत्कृष्ट भी अवगाहना घनांगुल के असंख्यात भाग मात्र ही है । तातै पूर्वोक्त प्रदा आदि देकर एक-एक स्कंध विषै असंख्यात प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर पाइए है । कैसे ? घनांगुल कों दोय बार पल्य का श्रसंख्यातवां भाग, अर नव बार सख्यात का भाग दीएं, जो प्रमाण होइ, तितने क्षेत्र विषे जो एक प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर होइ, तो संख्यात घनांगुल प्रमाण आदा, मूला आदि स्कध विषै केते पाइए ? असे त्रैराशिक कीएं, लब्ध राशि दो बार पल्य का असंख्यातवा भाग, दश बार संख्यात मांडि, परस्पर गुणै, जितना प्रमाण होइ, तितने एक-एक आदा आदि स्कंध विषे प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर पाइए है । बहुरि एक स्कंध विषै अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती जीवनि के शरीर यथासंभव असंख्यात भी होंइ, वा सख्यात भी होंइ । बहुरि जेते प्रत्येक शरीर है, तितने ही तहां वनस्पती जीव जाने जाते हा एक -एक शरीर प्रति एक-एक ही जीव होने का नियम है ।
बीजे जोरणीभूदे, जीवो चंकमदि सो व अण्णो वा । जेविय मूलादीया, ते पत्तेया पढमदाए ॥ १८७॥
बीजे योनीभूते, जीवः चंक्रामति स वा अन्यो वा । येsपि च मूलादिकास्ते प्रत्येकाः प्रथमतायाम् ॥ १८७॥