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irenarrafन्द्रिका भाषाटोका 1
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इहां तर्क - जो इस लक्षण विषै विशेष के प्रभाव ते तिन इंद्रियनि के संकर व्यतिकररूप करि प्रवृत्ति प्राप्त होय; जो परस्पर इंद्रियनि का स्वभाव मिलि जाय, सो संकर कहिए । अपने स्वभावते जुदापना का होना, सो व्यतिकर कहिए ।
तहां समाधान जो इहां 'प्रत्यक्षे नियमिते रतानि इंद्रियारिण' अपने-अपने लक्षण का प्रतिपादन है । ता
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नियमरूप प्रत्यक्ष विषै जे रत, ते इंद्रिय है, जैसा नियमरूप कहने करि अपना-अपना विशेष का ग्रहण भया । अथवा सकर व्यतिकर दोष निवारण के अर्थ 'स्वविषयनिरतानि इंद्रियारिग' स्वविषय कहिए अपना-अपना विषय, तिहि विषै 'नि' कहिए निश्चय करि - निर्णय करि रतानि कहिए प्रवर्ते, इंद्रिय है, जैसा कहना ।
इहां तर्क - जो संशय, विपर्यय विषै निर्णयरूप रत नाहीं है । ताते इस लक्षण करि सशय, विपर्ययरूप विषय ग्रहण विषे आत्मा के अतीद्रियपना होइ ।
तहां समाधान - जो रूढि के बल ते निर्णय विषै वा संशय विपर्यय विषै दोऊ जायगा तिस लक्षरण की प्रवृत्ति का विरोध नाहीं । जैसे 'गच्छतीति गौ' गमन करें, ताहि गो कहिए; सो समभिरूढ - नय करि गमन करते वा शयनादि करते भी गो कहिए । तैसे इहां भी जानना । अथवा 'स्ववृत्तिनिरतानि इंद्रियाणि' स्ववृत्ति कहिए संशय, विपर्यय रूप वा निर्णयरूप अपना प्रवर्तन, तीहि विषै निरतानि कहिये व्यापार रूप प्रवर्ते, ते इंद्रिय है; औसा लक्षण कहना ।
इहां तर्क - जो असा लक्षण कीएं अपने विषय का ग्रहण रूप व्यापार विपे जब न प्रवर्तै, तीहि अवस्था विषै प्रतीद्रियपना कहना होइ ।
तहां समाधान असे नाही, जाते पूर्वे ही उत्तर दीया है । रूढि करि विपय ग्रहण व्यापार होते वा न होतें पूर्वोक्त लक्षण संभव है । अथवा 'स्वार्थनिरतानि इंद्रियाणि' अर्यते कहिए जानिए, सो अर्थ, सो अपने विषे वा विषयरूप ग्रर्थ विषे जे निरत, ते इद्रिय है । सो इस लक्षण विषे कोऊ दोष नाही; तातै इहा किछू तर्क रूप कहना ही नाही । अथवा 'इंदनात् इंद्रियारिण' इंदनात् कहिए स्वामीपनां तै इंद्रिय है । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द इनिका जाननेरूप ज्ञान का प्रावरणभूत जे कर्म, तिनिका क्षयोपगमते अपना-अपना विषय जाननेरूप स्वामित्व को धरं द्रव्यं
द्रिय है कारण जिनिका ते इंद्रिय हैं । असा अर्थ जानना । उक्तं च