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[ गोम्मटसार जीवकाम गाथा १६५. टोका - इंद्रिय दोय प्रकार है - एक भावेद्रिय, एक द्रव्येद्रिय ।
तहां लब्धि-उपयोगरूप तौ भावेद्रिय है। तहां मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम तै भई जो विशुद्धता इंद्रियनि के जे विषय, तिनके जानने की शक्ति जीव के भई, सो ही है लक्षण जाका, सो लब्धि कहिए ।
बहुरि मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम ते निपज्या ज्ञान, विषय जानने का प्रवर्तनरूप सो, उपयोग कहिए । जैसे किसी जीव के सुनने की शक्ति है । परंतु उपयोग कहीं और जायगां लगि रह्या है, सो विना उपयोग किछु सुनै नाही। बहुरि कोऊ जान्या चाहै है अर क्षयोपशम शक्ति नाही, तो कैसे जाने ? तातै लब्धि पर उपयोग दोऊ मिले विपय का ज्ञान होइ । तातै इनिकौं भावेद्रिय कहिए ।
भाव कहिए चेतना परिणाम, तीहिस्वरूप जो इंद्रिय, सो भावेद्रिय कहिए ।
__ जाते इंद्र जो आत्मा, ताका जो लिंग कहिए चिह्न, सो इंद्रिय है। जैसी निरुक्ति करि भी लन्धि-उपयोगरूप भावेद्रिय का ही दृढपनां हो है।
वहुरि निर्वृत्ति अर उपकरण रूप द्रव्येद्रिय है। तहां जिनि प्रदेशनि करि विपयनि को जानें, सो निर्वत्ति कहिए। वहरि वाके सहकारी निकटवर्ती जे होइ, तिनिको उपकरण कहिए । सो जातिनामा नामकर्म के उदय सहित शरीरनामा नामकर्म के उदयते निपज्या जो निर्वृत्ति-उपकरणरूप देह का चिह्न, एकेद्रियादिक का शरीर का यथायोग्य अपने-अपने ठिकाने आकार का प्रकट करनहारा पुद्गल द्रव्यस्वल्प इंद्रिय, सो द्रव्येद्रिय है। जैसे इंद्रिय द्रव्य-भाव भेद करि दोय प्रकार है । तहां लब्धि-उपयोग भावेद्रिय है।
तहां विपय के ग्रहण करने की शक्ति, सो लब्धि है । अर विषय के ग्रहणम्प व्यापार, सो उपयोग है।
अब इंद्रिय शब्द +
लक्षण
न मो प्रत्यल कहिए कहिए व्यापार
का प्रति जो प्रवतें,