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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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टीका - नीचली जे दूसरी वंशा पृथ्वी सौं लगाई सातवी पृथ्वी पर्यंत छह पृथ्वी के नारकीनि का जोड दीएं साधिक जगत श्रेणी का बारह्वा मूल करि भाजित जगत श्रेणी प्रमाण होइ सो पूर्वे सामान्य सर्वनारकीनि का परिमाण कह्या, तामैं घटाएं, जितने रहें, तितने पहिली धम्मा पृथ्वी के नारकी जानने । इहां घटावनेरूप त्रैराशिक असें करना । सामान्य नारकीनि का प्रमाण विषे जगच्छ्रेणी गुण्य है । बहुरि घनांगुल का द्वितीय वर्गमूल गुणकार है, सो इस प्रमाण विषे जगच्छ्र ेणीमात्र घटावना होइ, तौ गुणकार का परिमाण में स्यों एक घटाइए तो जो जगच्छ्रेणी का बारह्वा वर्गमूल करि भाजित साधिक जगच्छ्रे णीमात्र घटावना होइ, तौ गुणकार में स्यों कितना घटै, इहां प्रमाणराशि जगत श्रेणी, फलराशि एक, इच्छाराशि जगत श्रेणी का बारह्वां वर्गमूल करि भाजित जगत श्रेणी, सो इहा फल करि इच्छा को
प्रमाण का भाग दीएं साधिक एक का बारह्नां भाग जगत श्रेणी के वर्गमूल का भाग आया । सो इतना घनागुल का द्वितीय वर्गमूल में स्यों घटाइ अवशेष करि जगत श्रेणी को गुणै, धर्मा पृथ्वी के नारकीनि का प्रमाण हो है ।
आगे तिर्यच जीवां की संख्या दोय गाथा करि कहै है--- संसारी पंचक्खा, तप्पुण्णा तिगदिहीणया कमसो । सामण्णा पंचिदी, पंचिदियपुण्णतेरिक्खा ॥ १५५ ॥
संसारिणः पंचाक्षाः, तत्पूर्णाः त्रिगतिहीनकाः क्रमशः । सामान्याः पंचेंद्रियाः, पंचेद्रिय पूर्णतैरश्चाः ।। १५५।।
टीका - ससारी जीवनि का जो परिमाण तीहिविषै नारकी, मनुष्य, देव इनि तीनो गतिनि के जीवनि का परिमाण घटाएं, जो परिमाण रहे, तितने प्रमाण सर्व सामान्य तिर्यच राशि जानने । बहुरि श्रागे इद्रिय मार्गणाविषै जो सामान्य पचेद्रिय जीवन का परिमाण कहिएगा, तामैसौ नारकी, मनुष्य, देवनि का परिमाण घटाए, पवेद्रिय तिर्यचनि का प्रमाण हो है ।
बहुरि आगे पर्याप्त पंचेद्रियनि का प्रमाण कहिएगा, तामेस्यो पर्याप्त नारकी, मनुष्य, देवनि का परिमाण घटाएं, पंचेद्रिय पर्याप्त तिर्यचनि का परिमाण हो है ।