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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १५३-१५४
सामण्णा णेरड्या, घरणअंगुल बिदियमूलगुणसेढी । बिदियादि वारदसअड, छत्तिदुणिजपदहिदा सेढी ॥ १५३ ॥
सामान्या नैरयिका, घनांगुलद्वितीयसूलगुरण श्रेरणी । द्वितीयादिः द्वादश दशाष्टषट्त्रिद्विनिजपदहिता श्रेणी ॥ १५३ ॥
सामान्य सर्व सातौ ही पृथ्वी के मिले हुवे नारकी जगत श्रेणी की तिहि प्रमित है । इहां
टीका घनांगुल का द्वितीय वर्गमूल करि गुणै, जो परिमाण होइ, घनांगुल का वर्गमूल करि उस प्रथम वर्गमूल का दूसरी बार वर्गमूल कीजिए, सो घनागुल का द्वितीय वर्गमूल जानना । जैसे अंकसंदृष्टि करि घनांगुल का प्रमाण सोलह, ताका वर्गमूल च्यारि, ताका द्वितीय वर्गमूल दोय होय, ताकरि जगत श्रेणी का प्रमाण दोय से छप्पन कौं गुणे, पांचसे बारह होय; तैसै इहां यथार्थ परिमाण जानना । बहुरि दूसरी पृथ्वी के नारकी जगत श्रेणी का वारह्वां वर्गमूल, ताका भाग जगत श्रेणी को दीएं जो प्रमाण होइ, तीहि प्रमित हैं । इहां जगत श्रेणी का वर्गमूल करिए सो प्रथम मूल, बहुरि उसका वर्गमूल कीजिए, सो द्वितीय वर्गमूल, वहुरि उस द्वितीय वर्गमूल का वर्गमूल कीजिए सो तृतीय वर्गमूल, इत्यादिक से ही इहां अन्य वर्गमूल जानना । वहुरि तीसरी पृथ्वी के नारकी जगत श्रेणी का दशवां वर्गमूल का भाग जगत श्रेणी की दीएं जो प्रमाण आवै तितने जानने । बहुरि चौथी पृथ्वी के नारकी जगत श्रेणी का आठवां वर्गमूल का भाग जगत श्रेणी को दीएं जो परिमाण यावे, तितने जानने । बहुरि जैसे ही पांचवी पृथ्वी, छठी पृथ्वी, सातवीं पृथ्वी के नारकी अनुक्रम ते जगत श्रेणी का छठा, तीसरा, दूसरा वर्गमूल का भाग जगत श्रेणी की दीए, जो जो परिमाण आवे, तितने तितने जानने । जैसें दोय सँ छप्पन का प्रथम वर्गमूल सोलह, द्वितीय वर्गमूल च्यारि, तृतीय वर्गमूल दोय, इनिका भाग क्रम ते दोय से छप्पन को दीएं सोलह, चौसठि, एक सौ अट्ठाईस होई । तैसे हा भी यथासंभव परिमाण जानना ।
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हेट्ठिमछप्पढवीणं, रासिविहीणो दु सव्वरासी दु । पढमावणि िरासी, रइयाणं तु णिद्दिट्ठो ॥ १५४ ॥
अधस्तनपट्पृथ्वीनां, राणिविहीनस्तु सर्वराशिस्तु । प्रथमावनों राशिः नैरयिकाणां तु निर्दिष्टः ॥ १५४ ॥