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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १५६-१५७-१५६ ३०४ ]
छस्तयजोयरणकम्हिजगपदरं जोणिमीण परिमाणं । पुण्णूणा पंचक्खा, तिरिमअपज्जत्तपरिसंखा ॥१५॥
षट्शतयोजनकृतिहतजगत्प्रतरं योनिमतीनां परिमाणं ।
पूर्णोनाः पंचाक्षाः, तिर्यगपर्याप्तपरिसंख्या ।। १५६ ।।
टीका - छस्से योजन के वर्ग का भाग जगत प्रतर की दीएं, जो परिमाण होड, सो योनिमती द्रव्य तियंचगीनि का परिमाण जानना । छस्सै योजन लंबा, छस्स योजन चौड़ा, एक प्रदेश ऊंचा असा क्षेत्र विप जितने आकाश प्रदेश होई, ताको भाग जगत प्रतर को देना, सो इनि योजननिकी प्रतरांगुल कीजिए, तव चौगुणा पगट्ठी को इक्यासी हजार कोडि करि गुरिणए, इतने प्रतरागुल होइ तिनिका भाग जगत प्रतर कौं दीजिए, तव एक भाग प्रमाण द्रव्य तिर्यंचणी जाननीं । वहुरि पंचेंद्रिय तिर्यत्रनि का परिनाण विप पंचेंद्रिय पर्याप्त तिर्यचनि का प्रमाण घटाएं, अवशेप अपर्याप्त पंचेद्रियनि का परिमारण हो है।
आगे मनुष्य गति के जीवनि की संख्या तीन गाथानि करि कहै हैंसेढी सूईअंगुलआदिमतदियपदभाजिहेगूणा । सामण्णमणुसरासी, पंचमकदिघणसमा पुण्णा ॥१५७॥
श्रेणी मूच्यंगुलादिमतृतीयपदभाजितकोना।
सामान्यमनुष्यराशिः, पंचमकृतिघनसनाः पूर्णाः ॥१५७।। टोका -- जगतक्षेणी की उच्यंगुल के प्रथम वर्गनल का भाग बीजिए, जो परिनाण पावै, ताका गुल का तृतीय वर्गमूल का भाग दीजिए, जो परिमाण आवै, नाम एक बटाएं, जितने अवशेष हैं तितने यामान्य सर्व मनुष्य जानने । वहुरि दिन्न वर्गवारा नंबंगे पंचम वर्गस्यन वादाल है, ताका घन कीजिए: जितने होइ निनने पर्यात मनुष्य जानने । ते कितने है ?
तल्लीन्नधुगविमलं, धूमसिलागादिचोरभयमेरू । तटहरितुझसा होति हु, माणुसपज्जत्तसंखंका ॥१५॥
तन्नोनमधुगविमलं, मसिलागाविचोरभयमेरू । तग्विनमा भवंति हि, मानुपपर्याप्तसंख्यांकाः 119