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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १३६-१३७
संज्ञा हो है | ग्रहार कहिए अन्नादिक, तीहिविपें संज्ञा कहिए वांछा, सो आहार संजा जाननी ।
आगे भय संज्ञा उपजने के कारण कहै है -
अइभीमदंसरणेण य, तस्सुवजोगेण ओमसत्तीए । भयकम्मुदीरणाए, भयसण्णा जायदे चदुहिं ॥ १३६ ॥
अतिभीमदर्शनेन, च, तस्योपयोगेन श्रवमसत्वेन । भयकर्मोदीररणया, भयसंज्ञा जायते चतुभिः ॥१३६॥
टीका - प्रतिभयकारी व्याघ्र आदि वा क्रूर मृगादिक वा भूतादिक का देखना वा उनकी कथाटिक का सुनना, उनकौं यादि करना इत्यादिक उपयोग का होना, बहुरि अपनी हीन शक्ति का होना ए तो वाह्य कारण हैं । बहुरि भय नामा नोकपायरूप मोह कर्म, ताका तीव्र उदय होना, यहु अंतरंग कारण है । इनि कारणनि करि भय संज्ञा हो है । भय करि भई जो भागि जाना, छिपि जाना इत्यादिक रूप वांछा, सो भव संज्ञा कहिए ।
धागे मैथुन सज्ञा उपजने के कारण कहैं हैं -
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पणिदरसभोयणेण य, तस्सुवजोगे कुसीलसेवाए । वेदस्सुदीरणाए, मेहुसण्णा हवदि एवं ॥ १३७ ॥
प्रणीतरसभोजनेन च, तस्योपयोगे कुशील सेवया । वेदस्योदीररगया, मैथुनसंज्ञा भवति एवं ॥ १३७ ॥
टीका - नृप्य जो कामोत्पादक गरिष्ठ भोजन, ताका खाना ग्रर काम कथा का सुनना ग्रर भोगे हुवे काम विपयादिक का यादि करना इत्यादिकरूप उपयोग होना, दहरि कुशीलवान कामी पुरुपनि करि सहित संगति करनी, गोष्ठी करनी ए ती वाह्य है | बहरि स्त्री, पुन्प, नपुंसक वेदनि विर्पे किसी ही वेदरूप नोकपाय की उदीगण सी अंतरंग करण हे । इनि कारणनि तं मैथुन संज्ञा हो है । मैथुन जो कामसेवनयुगसम्बन्धी कर्म, तीहिविषे वांछा, मैथुनसंज्ञा जाननी ।
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ग्राही परिग्रह मजा उनजने के कारण कहे हैं -