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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया १२८ हेट्टिमछप्पुढवीणं, जोइसिवणभवरणसम्बइत्थोरणं । पुष्णिदरे गहि सम्मो, ण सासरगो रणारयापुण्रणे ॥ १२८ ।। अधस्तनषट्पृथ्वीनां, ज्योतिष्कवानभवनसर्वस्त्रीणाम् ।
पूर्णेतरस्मिन् नहि सम्यक्त्वं न सासनो नारकापूर्णे ॥ १२८ ॥ टोका - नरक गति विष रत्नप्रभा विना छह पृथ्वी संबंधी नारकोनि के पर ज्योतिपी, व्यंतर, भवनवासी देवनि के अर सर्व ही स्त्री - देवांगना, मनुप्यणी, तिर्यचनी, तिनिकै निर्वत्ति अपर्याप्त दशा विष सम्यक्त्व न पाइए । जाते तीहि दशा विपै सम्यक्त्व ग्रहणे की योग्य काल नाही। अर सम्यक्त्व सहित मरै तिर्यच मनुप्य, सो तहां उपजै नाही। वहुरि सम्यक्त्व ते भ्रप्ट होइ जो जीव मिथ्यादप्टि वा सासादन होड, तो तिनिका यथासंभव तहां नरकादि विपं उपजने का विरोध है नाही । वहुरि सर्व ही सातो पृथ्वी के नारकी, तिनिकै निर्वृत्ति अपर्याप्त दशा विष सासादन गुणस्थान न पाइए, असा नियम जानना । जाते नरक विपै उपज्या जीव के तिस काल विर्ष सासादनपने का अभाव है । इति श्री आचार्य नेमिचन्द्रसिद्धांतचक्रवर्तिविरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पचसंग्रह ग्रथ जीवतत्त्वप्रदीपिका नामा सस्कृत टीका के अनुसार इस सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामा भापाटीका विष जीवकाण्ड विपै प्ररूपित जे वीस प्ररूपणा तिनिविपै पर्याप्त
प्ररूपण नामा तीसरा अधिकार पूर्ण भया ।। ३ ।।