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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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पाच में छत्तीस (६५५३६) प्रमाण का नाम पणट्ठी कहिये है। बहुरि याका वर्ग पाचवा स्थान नादाल, सो बियालीस चौराणवै, छिनवै, बहत्तरि, छिनवै ये अंक लिखे जो प्रमाण होइ, ताकी बादाल कहिये (४२ ६४ ६६ ७२ ६६) ।
बहुरि याका वर्ग छठा स्थान एकट्टी, सो एक, आठ, च्यारि च्यारि, छह, सात, च्यारि-च्यारि, बिदी, सात, तीन, सात, बिदी, नव, पांच, पांच, एक, छह, एक, छह इनि अकनि करि जो प्रमाण होइ ता. एकट्टी कहिये है (१८४४ ६ ७ ४ ४ ० ७ ३ ७ ० ६ ५ ५ १६ १६) । बहुरि याका वर्ग सातवां स्थान असे ही पहलापहला स्थाननि का वर्ग कीए एक-एक स्थान होइ । तहां सख्यात स्थान भए जघन्य परीतासख्यात की वर्गशलाका होइ ।
सो वर्गशलाका कहा कहिए ?
दोय के वर्ग ते लगाइ जितनी बार वर्ग कीए विवक्षित राशि होइ, तितनी ही विवक्षित राशि की वर्गशलाका जाननी । तातै द्विरूप वर्गधारा आदि तीन धारानि विष जितने स्थान भए जो राशि होइ, तीहि राशि की तितनी वर्गशलाका है । जैसे पणठो की वर्ग शलाका च्यारि, बादाल की पाच, इत्यादि जाननी । बहुरि जघन्य परीतामख्यात को वर्गशलाका स्थान तै लगाइ सख्यात स्थान भए, तब जघन्य परीतासख्यात के अर्धच्छेदनि का परिमारण होइ ।
सो अर्धच्छेद कहा कहिए?
विवक्षित राशि का जेती बार आधा-आधा होइ, तितने तिस राशि के अर्धच्छेद जानने । जैसे सोलह को एक बार आधा कीये आठ होइ, दूसरा आधा कीये च्यारि होइ, तीसरा प्राधा कीये दोय होइ, चौथा आधा कीये एक होइ, असे च्यारि बार आधा भया, तातै सोलह का अर्धच्छेद च्यारि जानने । अस ही चौसठि के अर्धच्छेद छह होइ । असे सर्व के अर्धच्छेद जानने । बहुरि तिस जघन्य परीतासस्यात के अर्धच्छेदरूप स्थान ते संख्यात वर्ग स्थान गये जघन्य परीतासख्यात का वर्गमूल होइ, यात एक स्थान गये इस वर्गमूल का वर्ग कीये जघन्य परीतासख्यात होइ । बहुरि यातै सख्यात स्थान गये जघन्य युक्तासख्यात होइ, सोई प्रावली का परिमाण है । इहा वर्गशलाकादिक न कहे, ताका कारण आगे कहियेगा। बहुरि याने एक स्थान जाइये, याका एक बार वर्ग कीजिये, तब प्रतरावली होइ; जातै प्रावली के वर्ग ही को प्रतरावली कहिये है।