________________
२४२ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १९७
वचन, काय योगनि के अविभाग प्रतिच्छेद; असे ये च्यारि राणि पूर्वोक्त परिमाण विप मिलावने । मिलायें जो परिमाण होड, तीहि महाराशि प्रमाण शलाका, विरलन, देय राशि करि अनुक्रम ते पूर्वोक्त प्रकार शलाका त्रय निष्ठापन करना । जैसे करते जो परिमाण होइ, सो जघन्य परीतानंत है । वहुरि याके ऊपरि एक-एक वधता एक घाटि उत्कृप्ट परीतानंत पर्यन्त मध्यम परीतानत जानना । बहुरि एक घाटि जघन्य युक्तानंत परिमारण उत्कृप्ट परीतानंत जानना।
अव जघन्य युक्तानंत कहिये है - जघन्य परीतानंत का विरलन करि-करि वखेरि एक-एक स्थान विष एक-एक जघन्य परीतानंत का स्थापन करि परस्पर गुणे जो परिमाण आवै, सो जघन्य युक्तानंत जानना । सो यह अभव्य राशि समान है । अभव्य जीव राशि जघन्य युक्तानंत परिमाण है । वहुरि याके ऊपरि एक-एक वधता एक घाटि उत्कृष्ट युक्तानंत पर्यन्त मध्यम युक्तानंत के भेद जानना । वहुरि एक घाटि जघन्य अनंतानन्त परिमारण उत्कृप्ट युक्तानन्त जानना ।
अव जघन्य अनंतानंत कहिये है - जघन्य युक्तानंत कों जघन्य युक्तानंत करि एक ही वार गुणे जघन्य अनंतानंत होइ है। वहुरि याके ऊपरि एक-एक वधता एक घाटि केवलनान के अविभाग प्रतिच्छेद प्रमाण उत्कृप्ट अनंतानंत पर्यन्त मध्यम अनंतानत जानने । सो याके भेदनि कौं जानता संता असे विधान करे - जघन्य अनंतानंत परिमारण शलाका, विरलन, देयल्प तीन राशि करि अनुक्रम ते शलाका त्रय निष्ठापन पूर्वोक्त प्रकार करि करना । जैसें करते जो मध्यम अनंतानंत भेदरूप परिमाण होड, तोहिं विप ए छह राशि और मिलावना । जीव राशि के अनंतवे भाग सिद्ध राशि, बहुरि तातै अनंतगुणा बैसा पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रत्येक वनस्पति, अस रागि रहित संसारी जीव राशि मात्र निगोद राशि, बहुरि प्रत्येक वनस्पति सहित निगोद राशि प्रमाण वनस्पति राशि, बहुरि जीव राशि तें अनंतगुणा पुद्गल राशि,
हरि याने अनन्तानन्त गुणा व्यवहार काल के समयनि की राशि, बहुरि याते अनंतानन्न गुग्गा अन्दोकाकाश के प्रदेशनि की राशि - असें छहो राशि के परिमाण पूर्व पग्निाग विग मिलावने । वहुरि मिलाए जो परिमाण होइ, तीहि प्रमाण शलाका, विल्लन, देय करि क्रम तै पूर्ववत् शलाका त्रय निष्ठापन कीये जो कोई मध्यम अनंतानंत का भेदम्प परिमाण पावै, तीहिं वि वर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य के अगुरुलघु गुण का विभाग प्रनिच्छेदनि का परिमाण अनंतानंत है, सो जोडिए । यौं करतें जो मह ।