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तम्यमानचन्द्रिका भाषाटोफा ]
१८६ विषै गमनादि करे, ते स्थलचर, अर जे आकाश विषै उडना आदि गमनादि कर, ते नभचर; ते तीनों प्रत्येक संज्ञी, असंज्ञो भेदरूप है, तिनिके छह भए । बहुरि ते छहौ गर्भज पर सम्मुर्छन हो हैं। तहां गर्भज विषै पर्याप्त अर निर्वृत्ति अपर्याप्त ए दोयदोय भेद संभवै है, तिनिके बारह भए । बहुरि सम्मूर्छन विषै पर्याप्त, निर्वृति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त ऐ तीन-तीन भेद संभव है, तिनिके अठारह भए । जैसे कर्मभूमिया पंचेद्रिय तिर्यच के तीस भेद भये ।
बहुरि भोगभूमि विर्षे सजी ही है, असंज्ञी नाही । बहुरि स्थलचर अर नभचर ही है, जलचर नाही । बहुरि पर्याप्त, निर्वृति अपर्याप्त ही है, लब्धि अपर्याप्त नाहीं । तातै संज्ञी स्थलचर, नभचर के पर्याप्त, अपर्याप्त भेद करि च्यारि ए भए; असे तिर्यच पंचेद्रिय के चौतीस भेद भये ।
बहुरि मनुष्यनि के कर्मभूमि विषै, आर्यखड विषै तौ गर्भज के पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त करि दोय भेद अर सम्मूर्छन का लब्धि अपर्याप्तरूप एक भेद असे तीन भए। बहुरि म्लेच्छखंड विर्षे गर्भज ही है । ताके पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त करि दोय भेद । बहुरि भोगभूमि पर कुभोगभूमि इन दोऊनि विषै गर्भज ही है । तिनके पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त करि दोय-दोय भेद भए । च्यारि भेद मिलि करि मनुष्यगति विर्षे नव भेद भए।
बहुरि देव, नारकी औपपादिक है, तिनिके पर्याप्त, निर्वत्ति अपर्याप्त भेद करि दोय-दोय भेद होई च्यारि भेद । औसै च्यारि गतिनि विष पचेद्रिय के जीवसमास के स्थान सैतालीस है।
बहुरि ए सैतालीस अर एकेद्री, विकले द्रिय के इक्यावन मिलि करि अठयाणवे जीवसमास स्थान हो है, जैसा सूत्रनि का तात्पर्य जानना।
__ इहां विवक्षा करि स्थावरनि के बियालीस, विकलेद्रियनि के नव, तिर्यच पंचेद्रियनि के चौतीस, देवनि के दोय, नारकीनि के दोय, मनुप्यनि के नव, सर्व मिलि अठ्याणवे भए । असै ए कहे जीवसमास के स्थान, ते ससारी जीवनि के ही जानने, मुक्त जीवनि के नाही है । जाते विशुद्ध चैतन्यभाव ज्ञान-दर्शन उपयोग का संयुक्तपनां करि तिन मुक्त जीवनि के त्रस-स्थावर भेदनि का अभाव है । अथवा 'संसारिणस्त्रसस्थावराः' असा तत्त्वार्थसूत्र विष वचन है, तातै ए भेद ससारी जीवनि के ही जानने।