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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका 1
की विवक्षा कौन करि सामान्य आलाप करि गुणनी । बहुरि दूसरी पंक्ति दोय जे पर्याप्त, अपर्याप्त भेद, तिनि करि गुणनी । बहुरि प्रथमा कहिए तीसरी पक्ति, सो तीन जे पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त भेद तिनि सामान्य करि गुरणनी । इहां दूसरी, तीसरी दोय पक्ति अप्रथमा है । तथापि दूसरी पंक्ति hi ही कही, तीहिकरि प्रथमा से शब्द करि अवशेष रही पक्ति तीसरी सो ग्रहण करी है ।
अपेक्षा
स्थान
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अब कहे भेदनि की यंत्र में रचना अनि करि लिखिये है ।
भावार्थ - एक को आदि देकरि उगणीस पर्यन्त जीवसमास के स्थान कहे । तिनिका सामान्यरूप ग्रहण कीएं एक आदि एक-एक बधते उगरणीस पर्यन्त, स्थान हो है । इहां सामान्य विषै पर्याप्तादि भेद गर्भित जानने । बहुरि तिन ही एक-एक के पर्याप्त, अपर्याप्त भेद कीए दोय कौ आदि देकर दोय - दोय बघते अडतीस पर्यन्त स्थान हो है । इहा अपर्याप्त विषे निर्वृत्ति पर्याप्त, लब्धि पर्याप्त दोऊ गर्भित जानने । बहुरि तिन ही एक-एक के पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त भेद कीये तिनिकौ आदि देकर तीन-तीन बधते सत्तावन पर्यन्त स्थान हो है । इहा जुदे-जु भेद जानने ।
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जीवसमास के स्थानकनि का यंत्र
पर्याप्त, अपर्याप्त अपेक्षा स्थान
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पर्याप्त, निर्वृत्ति
अपर्याप्त, लब्धि
अपर्याप्त अपेक्षा
स्थान
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