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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ७७-८८
स्थान चौदह हो है । वहुरि तैसे ही स्थावरकाय के दश, बहुरि त्रसकाय के वेद्री, तेद्री, चौंद्री, असंज्ञी पचेद्री, संजी पंचेद्री ए पांच मिलि करि जीवसमास के स्थान पंद्रह हो हैं । बहुरि तैसे ही पृथिवी, अप्, तेज, वायु ए च्यारि र साधारण वनस्पति के नित्यनिगोद, इतरनिगोद ए दोय भेद मिलि छह भए । ते ए जुदे-जुदे वादर सूक्ष्म भेद लीए है । ताके वारह अर एक प्रत्येक वनस्पती, औसे स्थावर काय तेरह अर सकाय विकलेद्रिय, असंज्ञी पंचेंद्रिय, संजी पंचेद्रिय ए तीनि मिलि जीवसमास के स्थान सोलह हो हैं । वहुरि तैसे ही स्थावरकाय के तेरह यर सकाय के वेद्री, तेंद्री, चौद्री, पचेंद्री ए च्यारि भेद मिलि करि जीवसमास के स्थान सतरह हो है । वहुरि स्थावरकाय के तेरह ग्रर त्रसकाय के केंद्री, तेद्री, चौद्री, असंजी पंचेद्री, संज्ञी पंचेद्री ए पांच मिलि जीवसमास के स्थान अठारह हो है ।
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सगजुगलह्मितसस्स य, पणभंगजुदेसु होंति उणवीसा । एयाणवीसो त्तिय, इगिवितिगुणिदे हवे ठारणा ॥७७॥ सप्तयुगले त्रस्य च, पंचभंगयुतेषु भवंति एकोनविंशतिः । एकादेकोनविंशतिरिति च एकद्वित्रिगुरिणते भवेयुः स्थानानि ॥७७॥
टीका - तैसें ही पृथ्वी, आप, तेज, वायु, नित्यनिगोद, इतरनिगोद ए छहों वादर-सूक्ष्मरूप, ताके वारह अर प्रत्येक वनस्पति के सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित ए दोय अर त्रस के वेद्री, तेद्री, चांद्री प्रसंगी पंचेद्रिय, संत्री पंचेद्रिय ए पांच मिलि जीवसमास के स्थान उगणीस हो हैं । असें कहे जे ए सामान्य जीवरूप एक स्थान की आदि देकरि उगरणीस भेदरूप स्थान पर्यन्त स्थान, तिनिक एक, दोय तीन करि गुणै, अनुक्रम ते अंत विपैं उगरणीस भेवस्थान, अड़तीस भेदस्थान, सत्तावन भेदस्थान हो है |
सामण्णेरण तिपंती, पढमा बिदिया अपूण्णगे इदरे । पज्जत्ते लद्धिअपज्जत्तेऽपढमा हवे पंती ॥७८॥
सामान्येन त्रिपंक्तयः, प्रथमा द्वितीया अपूर्णके इतरस्मिन् । पर्याप्त लब्ध्यपर्याप्तेऽप्रथमा भवेत् पंक्तिः ॥ ७८ ॥
टीका - पूर्व कहे जे एक को आदि देकर एक-एक वधते उगरणीस भेदरूप म्यान, निनिकी तीन पंक्ति नीचे-नीचे करनी । तिनि विषें प्रथम पंक्ति तो पर्याप्तादिक