________________
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ १८५
टीका - तहां उपयोग लक्षण धरै सामान्यमात्र जीवद्रव्य, सो द्रव्यार्थिक नय करि ग्रहण कीए जीवसमास का स्थान एक है । बहुरि संग्रहनय करि ग्रह्या जो अर्थ, ताका भेद कररणहारा जो व्यवहारनय, ताकी विवक्षा विषै संसारी जीव के मुख्य भेद त्रस-स्थावर, ते अधिकाररूप है; असे जीवसमास के स्थान दोय है । बहुरि अन्य प्रकार करि व्यवहारनय की विवक्षा होते एकेद्रिय, विकलेद्रिय, सकलेद्रिय, जीवनि को अधिकाररूप करि जीवसमास के स्थान तीन है । बहुरि जैसे ही आगे भी सर्वत्र अन्य अन्य प्रकारनि करि व्यवहारनय की विवक्षा जाननी । सो कहै हैं - एकेद्रिय, विकलेन्द्रिय दोय तौ ए, अर सकलेद्रिय जो पंचेद्रिय, ताके असंज्ञी, संज्ञी ए दोय भेद, असै मिलि जीवसमास के स्थान च्यारि हो हैं । बहुरि तैसे ही एकेद्रिय, बेइंद्री तेइंद्री, चौइंद्री, पंचेद्री भेद ते जीवसमास के स्थान पांच है । बहुरि तैसे ही पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति, त्रसकायिक भेद ते जीवसमास के स्थान छह है। बहुरि तैसे ही पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति ए पांच स्थावर अर अन्य त्रसकाय के विकलेंद्रिय, सकलेद्रिय ए दोय भेद, औसै मिलि जीवसमास के स्थानक सप्त हो है । बहुरि तैसे ही पृथ्वी आदि स्थावरकाय पांच, विकलेंद्रिय, असंज्ञी पंचेद्रिय, संज्ञी पचेद्रिय ए तीन मिलि करि जीवसमास के स्थान आठ हो है । बहुरि स्थावर काय पांच अर बेद्री, तेइंद्री, चौद्री, पचेद्री ए च्यारि मिलि करि जीवसमास के स्थान नव हो है । बहुरि तैसे ही स्थावर काय पाच, अर बेद्री, तेद्री, चौद्री, असंज्ञी पचेद्री, सज्ञी पचेद्री ए पांच मिलि करि जीवसमास के स्थान दश हो है ।
पणजुगले तससहिये, तसस्स दुतिचदुरपणगभेदजुदे । छदुगपत्तेय य, तसस्स तियचदुरपणगभेदजुदे ॥७६॥
पंचयुगले त्रससहिते, त्रसस्य द्वित्रिचतुःपंचकभेदयुते । षद्विक प्रत्येके च त्रस्य त्रिचतुः पंचभेदयुते ॥७६॥
टीका - तैसे ही स्थावर काय पाच, ते प्रत्येक बादर-सूक्ष्म भेद सयुक्त, ताके दश अर सकाय ए मिलि जीवसमास के स्थान ग्यारह हो है । बहुरि तैसे ही स्थावरकाय दश अर विकलेद्रिय सकलेद्रिय, मिलि करि जीवसमास के स्थान बारह हो है । बहुरि तैसे ही स्थावरकाय दश अर त्रसकाय के विकलेद्रिय, सजी, असज्ञी पंचेद्रिय ए तीन मिलि करि जीवसमास के स्थान तेरह हो है । बहुरि स्थावर काय दश अर सकाय के बेंद्री, तेद्री, चौद्री, पचेद्री ए च्यारि भेद मिलि जीवसमास के