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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ७१
तहां तद्भव सामान्य का अर्थ कहै है - विवक्षित एकद्रव्य विषे प्राप्त जो त्रिकाल सवंधी पर्याय, ते भवंति कहिए विद्यमान जाविषै होइ, सो तद्भव मामान्य है । ऊर्ध्वता सामान्य का नाम तद्भव सामान्य है | जहां अनेक काल संबंधी पर्याय का ग्रहण होइ, तहां ऊर्ध्वता सामान्य कहिए । जातै काल के समय है, ते ऊपरऊपर क्रम प्रवर्ते है, युगपत् चौड़ाईरूप नाही प्रवर्ते है; तातै इहां नाना काल विषे एक विवक्षित व्यक्ति विषै प्राप्त जे पर्याय, तिनिका अन्वयरूप ऊर्ध्वता सामान्य है; सो एक द्रव्य के आश्रय जो पर्याय, सो अन्वयरूप है । जैसे स्थास, कोश, कुशूल, घट, कपालक आदि विषे माटी अन्वयरूप आकार धरे द्रव्य है ।
भावार्थ माटी क्रम तै इतने पर्यायरूप परिणया । प्रथम स्थास कहिए पिडरूप भया । बहुरि कोश कहिए चाक के ऊपरि ऊभा कीया, पिडरूप भया । वहुरि कुशूल कहिए हाथ अगूंठनि करि कीया आकाररूप भया । वहुरि घट कहिए घडारूप भया । बहुरि कपाल कहिए फूटया घडारूप भया । असे एक माटीरूप व्यक्ति विषे अनेक -कालवर्ती पर्याय हो हैं । तिनि सर्वानि विषै माटीपना पाइए है । ताकरि सर्वत्र माटी द्रव्य अवलोकिए है । जैसे इहां भी अनेक कालवर्ती अनेक अवस्थानि वि एकेद्रिय आदि जीव द्रव्यरूप व्यक्ति, सो अन्वयरूप द्रव्य जानना । सो याका नाम तद्भव सामान्य वा ऊर्ध्वता सामान्य है । तीहि तद्भव सामान्य करि उपलक्षणरूप संयुक्त असे जो सादृश्य सामान्य कहिए, तिर्यक् सामान्य ते जीवसमास हैं । सो एक काल विषै नाना व्यक्तिनि कौं प्राप्त भया औसा एक जातिरूप ग्रन्वय, सो तिर्यक् सामान्य है । याका अर्थ यहु – जो समान धर्म का नाम सादृश्य सामान्य है । जैसे खांडी, मूंडी, सावरी इत्यादि नाना प्रकार की व्यक्तिनि विषै गऊपरणा समान धर्म है ।
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भावार्थ
एक कालवर्ती खांडा, मूडा, सांवला इत्यादि अनेक वैल, तिनि विषे वैलपना समान धर्म है; सो यहु सादृश्य सामान्य है । तैसे एक कालवर्ती पृथ्वीकायिक आदि नाना प्रकार जीवनि विषे एकेद्रिय युक्तपना आदि धर्म हैं, समान परिणामरूप है; तातै इनिकों सादृश्य सामान्य कहिए | औसे जे सादृश्य सामान्य, तेई जीवसमास हैं; सा तात्पर्य जानना । वहुरि तिनि च्यारि युगलनि की आठ प्रकृतिनि विषे एकेंद्रिय जाति नाम कर्म सहित त्रस नाम कर्म का उदय विरोधी है । वहुरि द्वीद्रियादिक जातिरूप नाम कर्म की च्यारि प्रकृतिनि का उदय सहित स्थावर सूक्ष्म - सावारण नाम प्रकृतिनि का उदय विरोधी है, अन्य कर्म का