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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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आगे श्री माधवचन्द्र विद्यदेव ते 'अष्टविधकर्मविकलाः' इत्यादि सात विणेषणनि का प्रयोजन दिखावै है -
सदसिवसंखो मक्कडि, बुद्धो गयाइयो य वेसेसी। ईसरमंडलिदसण,-विदूसणठें कयं एवं ॥ ६६ ॥ सदाशिवः सांख्यः मस्करी, बुद्धो नैयायिकश्च वैशेषिकः ।
ईश्वरमंडलिदर्शनविदूषणार्थ कृतमेतत् ॥ ३९ ॥ टीका - सदाशिवमत, सांख्यमत, मस्करी सन्यासी मत, बौद्धमत, नैयायिक मत, वैशेषिकमत, ईश्वरमत, मंडलिमत ए जु दर्शन कहिए मत, तिनके दूषने के अर्थि ए पूर्वोक्त विशेषण कीए है । उक्त च -
सदाशिवः सदाकर्म, सांख्यो मुक्तं सुखोज्झितम् । मस्करी किल मुक्तानां, मन्यते पुनरागतिम् ॥ क्षणिकं निर्गुणं चैव, बुद्धो यौगश्च मन्यते ।
कृतकृत्यं तमीशानो, मंडली चोर्ध्वगामिनम् ॥ इनिके अर्थ - सदाशिव मतवाला सदा कर्म रहित मान है। सांख्य मतवाला मुक्त जीव को सुख रहित मान है। मस्करी सन्यासी, सो मुक्त जीव कै संसार विष बहुरि भावना मान है। बहुरि बौद्ध पर योग मतवाले क्षणिक अर निर्गुण आत्मा को मान है । बहुरि ईशान जो सृप्टिवादी, सो ईश्वर को अकृतकृत्य मान है । बहुरि माडलिक आत्मा को ऊर्ध्वगमन रूप ही मान है । असे माननेवाले मतनि का पूर्वोक्त विशेषण ते निराकरण करि यथार्थ सिद्धपरमेष्ठी का स्वरूप निरूपण कीया। ते सिद्ध भगवान आनन्दकर्ता होहु । इति श्रीग्राचार्य नेमिवद्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पसग्रह ग्रन्थ की जीव तत्त्वप्रदीपिका नाम सस्कृत टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नाम भाषा टीका के विष जीव काडविषै कही जे वीस प्ररूणा तिन विष गुणस्थान प्ररूपणा है नाम जाका
असा प्रथम अधिकार सपूर्ण भया ॥१॥