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[ मामान्य प्रकरण
ताकौं कहिये है - इस ग्रंथ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नामा संस्कृत टीका ती पूर्वे है ही । परन्तु तहा सस्कृत, गणित, आम्नाय आदि का ज्ञान रहित जे मंदबुद्धि हे, तिनिका प्रवेश न हो है । बहुरि इहां काल दोष ते बुद्ध्यादिक के तुच्छ होने करि संस्कृतादि ज्ञान रहित धने जीव है । तिनिके इस ग्रंथ के अर्थ का ज्ञान होने के अथि भापा टीका करिए है । सो जे जीव सस्कृतादि विशेषज्ञान युक्त है, ते मूलग्रंथ वा संस्कृत टीका ते अर्थ धारंगे । वहुरि जे जीव संस्कृतादि विशेप ज्ञान रहित है, ते इस भाषा टीका ते अर्थ धारौ । वहुरि जे जीव संस्कृतादि ज्ञान सहित है, परंतु गणित आम्नायादिक के ज्ञान के अभाव ते मूलग्रंथ वा संस्कृत टीका विप प्रवेश न पावै है, ते इस भाषा टीका ते अर्थ को धारि, मूल ग्रंथ वा संस्कृत टीका विपं प्रवेश करहु । वहुरि जो भाषा टीका ते मूल ग्रंथ वा संस्कृत टीका विप अधिक अर्थ होइ, ताके जानने का अन्य उपाय वनै सो करहु ।।
इहां कोऊ कहै - संस्कृत ज्ञानवालों के भापा अभ्यास विप अधिकार नाही।
ताकौं कहिये है - संस्कृत ज्ञानवालों की भाषा वांचने ते कोई दोप तो नाही उपज है, अपना प्रयोजन जैसे सिद्ध होइ तैसे ही करना । पूर्व अर्धमागधी आदि भापामय महान ग्रंथ थे। वहुरि बुद्धि की मंदता जीवनि के भई, तब संस्कृतादि भापामय ग्रंथ बने । अव विशेप वृद्धि की मंदता जीवनि के भई तातै देश भापामय ग्रंथ करने का विचार भया । बहुरि संस्कृतादिक का अर्थ भी अव भाषाद्वार करि जीवनि की समझाइये है । इहां भाषाद्वार करि ही अर्थ लिख्या तो किछ दोष नाहीं है।
ऐसे विचारि श्रीमद् गोम्मटसार द्वितीयनामा पंचसंग्रह ग्रंथ की 'जीवतत्त्व प्रदीपिका' नामा संस्कृत टीका, ताकै अनुसारि 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका' नामा यहु देशभाषामयी टीका करने का निश्चय किया है । सो श्री अरहंत देव वा जिनवाणी वा निग्रंथ गानि के प्रसाद ते वा मूल ग्रंथकर्ता नेमिचद्र आदि आचार्यनि के प्रसाद ते यह कार्य सिद्ध होहु ।
अव इस शास्त्र के अभ्यास विष जीवनि को सन्मुख करिए है । हे भव्यजीव ही ! तुम अपने हित की वाछौ हो तो तुमको जैसे वन तैसे या शास्त्र का अभ्यास करना । जाते आत्मा का हित मोक्ष है । मोक्ष विना अन्य जो है, सो परसयोगअनिन है, विनाशीक है, दुःखमय है । अर मोक्ष है सोई निज स्वभाव है, अविनाशी है, अनंत मुखमय है । तातै मोक्ष पद पावने का उपाय तुमको करना । सो मोक्ष के उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्नान, सम्यक्चारित्र है । सो इनकी प्राप्ति जीवादिक पे स्वम्प जानने ही तै हो है।