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________________ सम्यग्ज्ञानचन्त्रिका भाषाटोका ] [ १६७ स्पर्धक अर बादरकष्टि क्षपक श्रेणी विष ही हो है, उपशम श्रेणी विष न हो है। बहुरि अनिवृत्तिकरण के परिणामनि करि ही कषायनि के सर्व परमाणु प्रानुपूर्वी संक्रमादि विधान करि एक लोभरूप परिणमाइ बादरकृष्टिगत लोभरूप करि पीछे तिनिको सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणमाव है, सो सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त भया लोभ, ताका जघन्य बादरकृष्टि से भी अनतवे भाग उत्कृष्ट सूक्ष्मकृष्टि विर्षे अनुभाग हो है। तहां अनंती कृष्टिनि विष क्रम ते अनंतगुणा अनुभाग घटता है । बहुरि परमाणुनि का प्रमाण जघन्य कृष्टि तै लगाइ उत्कृष्ट कृष्टि पर्यन्त चय घटता क्रम लीए है, सो विशेष आगे लिखैगे सो जानना । सो यहु विधान क्षपक श्रेणी विष हो है। ' उपशम श्रेणी विष पूर्वस्पर्धकरूप जे लोभ के केई परमाणु, तिन ही को सूक्ष्म कृष्टिरूप परिणमावै हैं, ताका विशेष प्रागै लिखेंगे । बहुरि असे अनिवृत्तिकरण विर्ष करी जो सत्ता विष सूक्ष्म कृष्टि, सो जहां उदयरूप होइ प्रवर्ते, तहां सूक्ष्मसापराय गुणस्थान हो है जैसा जानना । अणुलोहं वेदंतो, जीवो उवसामगो व खवगो वा। सो सुहमसांपराओ, जहखादेणूणओ किंचि ॥६०॥ अणुलोभं विदन, जीवः उपशामको वक्षपको वा। स सूक्ष्मसांपरायो, यथाख्यातेनोनः किंचित् ॥६०॥ टीका - अनिवृत्तिकरण काल का अत समय के अनतरि सूक्ष्मसापराय गुणस्थान को पाइ, सूक्ष्म कृष्टि को प्राप्त जो लोभ, ताके उदय को भोगवता संता उपशमावनेवाला वा क्षय करने वाला जीव, सो सूक्ष्मसांपराय है; जैसा कहिए है। सोई सामायिक, छेदोपस्थापना संयम की विशुद्धता तै अति अधिक विशुद्धतामय जो सूक्ष्मसांपराय संयम, तीहिकरि संयुक्त जो जीव, सो यथाख्यातचारित्र संयुक्त जीव ते किचित् मात्र ही हीन है । जाते सूक्ष्म कहिए सूक्ष्म कृष्टि को प्राप्त असा जो सांपराय कहिए लोभ कषाय, सो जाकै पाइए, सो सूक्ष्मसापराय है जैसा सार्थक नाम है। आग उपशांत कषाय गुणस्थान के स्वरूप का निर्देश करै है। कदकफलजुदजलं १ वा, सरए सरवारिणयं व रिणम्मलयं । सयलोवसंतमोहो, उवसंतकसायओ होदि ॥६१॥ २ १. 'कदकफलजुदजल' के स्थान पर 'सकयगहल जल' ऐसा पाठान्तर है। २. पट्खण्डागम - धवला पुस्तक १, पृष्ठ १६०, गाथा १२२
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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