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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५१-५२ ऐसे हैं; ता कारण तै अपूर्व है करण कहिए परिणाम जा विपै, सो अपूर्वकरण गुणस्थान है - ऐसा निरुक्ति करि लक्षण कह्या है ।
भिण्गसमयदिव्यहि बु, जीवहिं व होति सददा सरिसो। करणेहं एवकसमयदिव्येहि लरिसो विसरिसो वा ॥५२॥ १ भिन्नसमयस्थितैस्तु, जीवैर्न भवति सर्वदा सादृश्यम् ।
करणैरेकसदयस्थितैः सादृश्यं वैसादृश्यं वा ॥५२॥
टीका - जैसे अध.प्रवृत्तकरण विर्ष भिन्न-भिन्न ऊपरि नीचे के समयनि विष तिप्ठते जीवनि के परिणामनि की संख्या पर विशुद्धता समान संभव है; तैसे इहां अपूर्वकरण गुणस्थान विर्ष सर्वकाल विर्ष भी कोई ही जीव के सो समानता न संभव है । वहुरि एक समय विष स्थित करण के परिणाम, तिनके मध्य विवक्षित एक परिणाम की अपेक्षा समानता पर नाना परिणाम की अपेक्षा असमानता जीवनि के अध करणवत् इहां भी संभव है, नियम नाही; असा जानना ।
भावार्थ - इस अपूर्वकरण विप ऊपरि के समयवर्ती जीवनि कै अर नीचले समयवर्ती जीवनि के समान परिणाम कदाचित् न होइ । वहुरि एक समयवर्ती जीवनि के तिस समय सवधी परिणामनि विष परस्पर समान भी होइ पर समान नाही भी होइ।
__ताका उदाहरण - जैसे जिनि जीवनि कौं अपूर्वकरण मांडै पांचवा समय भया, तहां तिन जीवनि के जैसे परिणाम होहि, तैसे परिणाम जिन जीवनि को अपूर्वकरण माडे प्रथमादि चतुर्थ समय पर्यन्त वा पप्ठमादि अंत समय पर्यन्त भए होहि, तिनकै कदाचित् न होड, यह नियम है। वहरि जिनि जीवनि को अपूर्वकरण माडे पाचवां समय भया. असे अनेक जीवनि के परिणाम परस्पर समान भी होइ, जैसा एक जीव का परिणाम होइ, तसा अन्य का भी होइ अथवा असमान भी होइ । एक जीव का औरसा परिणाम होइ, एक जीव का औरसा परिणाम होइ । जैसे ही अन्य-अन्य समयवर्ती जीवनि के तो जैसे अध करण विष परस्पर समानता भी थी, तैसे इहां नाही है । बहुरि एक समयवर्ती जीवनि के जैसे अब करण विष
१-पटटागन - वदना पुग्न
, पृष्ठ १८४, गाथा न ११६.