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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ] [ १५५ समानता वा असमानता थी, तैसे इहा भी है । या प्रकार त्रिकालवर्ती नाना जीवनि के परिणाम इस अपूर्वकरण विष प्रवर्तते जानने । अंतोमुत्तमेत्ते, पडिसमयमसंखलोगपरिणामा । कमउड्ढा पुन्वगुणे, अणुकट्ठी रणत्थि रिणयमेण ॥५३॥ अंतर्मुहूर्तमात्रे, प्रतिसमयमसंख्यलोकपरिणामाः । क्रमवृद्धा अपूर्वगुणे, अनुकृष्टिर्नास्ति नियमेन ॥५३॥ टीका - अंतर्मुहूर्तमात्र जो अपूर्वकरण का काल, तीहि विष समय-समय प्रति क्रम ते एक-एक चय बधता असख्यात लोकमात्र परिणाम है । तुहा नियम करि पूर्वापर समय सबंधी परिणामनि के समानता का अभाव ते अनुकृष्टि विधान नाही है। इहा भी अंक सदृष्टि करि दृष्टांतमात्र प्रमाण कल्पना करि रचना का अनुक्रम दिखाइये है । अपूर्वकरण के परिणाम च्यारि हजार छिनवै, सो सर्वधन है। बहुरि अपूर्वकरण का काल पाठ समय मात्र, सो गच्छ है । बहुरि सख्यात का प्रमाण च्यारि (४) है । सो ‘पदकदिसंखेण भाजिदे पचयो होदि' इस सूत्र करि गच्छ ८ का वर्ग ६४ अर संख्यात च्यारि का भाग सर्वधन ४०६६ को दीए चय होइ, ताका प्रमाण सोलह भया । बहुरि 'व्येकंपदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं' इस सूत्र करि एक धाटि गच्छ ७, ताका आधा ७ को चय १६ करि गुणै जो प्रमाण ५६ होय, ताका गच्छ (८) आठ करि गुणे चय धन च्यारि सै अडतालीस (४४८) होइ । याको सर्वधन ४०६६ में घटाइ, अवशेष ३६४८ को गच्छ आठ (८) का भाग दीए, प्रथम समय सबंधी परिणाम च्यारि सै छप्पन (४५६) हो है । यामैं एक चय १६ मिलाए द्वितीय समय सबंधी हो है। असे तृतीयादि समयनि विर्ष एक-एक चय बधता परिणाम पुज है, तहां एक घाटि गच्छ मात्र चय का प्रमाण एक सौ बारह, सो प्रथम समय संबधी धन विष जोडे, अत समय सबंधी परिणाम पुज पाच सै अडसठि हो है । यामै एक चय घटाए द्विचरम समय सबधी परिणाम पुज पांच से बावन हो है । जैसे ही एक चय घटाए आठौ गच्छ को प्रमाण जानना ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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