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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
बहुरि एक स्थान विषै साडा सात चय का प्रमाण होइ, तो सोलह स्थानकनि विष केते चय हो है ? ऐसे राशिक करि प्रमाण राशि एक स्थान, फलराशि साडा सात चय, तिनिका प्रमाण तीस, इच्छाराशि सोलह स्थान, तहा फल की इच्छा करि गुरिण, प्रमाण का भाग दिये लव्धराशि च्यारि सै असी पूर्वोक्त उत्तरधन का प्रमाण आवै है । ऐसे ही अनुकृष्टि विर्ष भी अंकसंदृष्टि करि प्ररूपण करना ।
बहुरि याही प्रकार अर्थसंदृष्टि करि भी सत्यार्थरूप साधन करना । ऐसे 'व्येकपदाघ्निचयगुणो गच्छ उत्तरधन' इस सूत्र की वासना बीजगणित करि दिखाई। बहुरि अन्य करण सूत्रनि की भी यथासंभव वीजगणित करि वासना जानना ।
ऐसे अप्रमत्त गुणस्थान की व्याख्यान करि याके अनन्तर अपूर्वकरण गुरणस्थान को कहै है -
अंतोमुत्तकालं, गमिऊण अधापवत्तकरणं तं । पडिसमयं सुज्झतो, अपुवकरणं समल्लियइ ॥५०॥ अंतर्मुहूर्तकालं, गमयित्वा अधःप्रवृत्तकरणं तत् ।
प्रतिसमयं शुध्दयन् अपूर्वकरणं समाश्रयति ॥५०॥ टीका - ऐसे अंतमुहर्तकाल प्रमाण पूर्वोक्त लक्षण धरै प्रध.प्रवृत्तकरण को गमाइ, विशुद्ध सयमी होड, समय-समय प्रति अनन्तगुणी विशुद्धता की वृति करि वधता सता अपूर्वकरण गुणस्थान को आश्रय करै हे।
एदह्मि गुणट्ठाणे, विसरिस समयोिह जीहि । पुत्वमपत्ता जह्मा, होति अपुवा हु परिणामा ॥५१॥
एतस्मिन् गुणस्थाने, विसदृशसमयस्थितीवः ।
पूर्वमप्राप्ता यस्माद्, भवंति अपूर्वा हि परिणामाः ।।५१॥ टीका-जा कारण ते इस अपूर्वकरण गगरधान वि विभाग समानरूप नाही, ऐने जे ऊपरि-परि के समयनि विर्ग नितीन विशुद्ध परिणाम पाए है: ते पूर्व-पूर्व ममपनि वि गिरी
१ पटासमग पुग.:
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