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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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फेर न कहना; जैसे अपुनरुक्तरूप है । तिनको अनेक जीव अनेक काल विषै आश्रय करें है । सो एक-एक परिणाम का एक-एक समय की विवक्षा करि नाना जीवनि का नानाकाल असंख्यात लोक प्रमाण समय मात्र है; असा जानना ।
बहुरि अब अधःप्रवृत्तकरण का काल विषै प्रथमादि समय संबधी स्थापे जे विशुद्धतारूप कषाय परिणाम, तिनिविषे प्रमाण के अवधारने को कारणभूत जे करणसूत्र, तिनिका गोपालिक विधान करि बीजगणित का स्थापन कहिए है; जातै पूर्वोक्त करणसूत्रनि का अर्थ विषै संशय का प्रभाव है । तहा 'व्येकपदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं' इस करणसूत्र की वासना अकसंदृष्टि अपेक्षा दिखाइए है । 'व्येक पदार्धनचयगुणो गच्छ' असा शब्द करि एक घाटि गच्छ का आधा प्रमाण चय सर्वस्थानकनि विषै ग्रहरण कीया, ताका प्रयोजन यहु जो ऊपरि वा नीचे के स्थान - कनि विषै हीनाधिक चय पाइए, तिनको समान करि स्थापै, एक घाटि गच्छ का आधा प्रमाण चय सर्व स्थानकनि विषै समान हो है । सो इहां एक घाटि गच्छ का आधा प्रमाण साड़ा सात है, सो इतने इतने चय सोलह समयनि विषै समान हो है । कैसे ? सो कहिए है - प्रथम समय विषे तो आदि प्रमाण ही है, ताके चय की वृद्धि
हानि नही है । बहुरि अंत समय विषै एक घाटि गच्छ का प्रमाण चय है, यात व्येकपद शब्द करि एक घाटि गच्छं प्रमाण चयनि की संख्या कही । बहुरि अर्ध शब्द करि अत समय के पंद्रह चयनि विषै साड़ा सात चय काढि प्रथम समय का स्थान विषै रचे दोऊ जायगा साड़ा सात, साड़ा सात चय समान भए । जैसे ही ताके नीचे पद्रहवां समय के चौदह चयनि विषे साड़ा छह चय काढि, द्वितीय समय का एक चय के आगे रचनारूप कीएं, दोऊ जाएगा साडा सात, साडा सात चय हो है । बहुरि ताके नीचे चौदहवां समय के तेरह चयनि विषे साड़ा पाच चय काढि, तीसरा समय का स्थान विषै दोय चय के आगे रचे दोऊ जायगा साड़ा सात, साड़ा सात चय हो है । औसे ही ऊपरि ते चौथा स्थान तेरहवा समय, ताकी आदि देकरि समयनि के साड़ा च्यारि आदि चय काढि नीचे तै चौथा समय आदि स्थानकनि के तीन आदि चयनि के आगे स्थापै सर्वत्र साडा सात, साडा सात चय हो है । जैसे सोलह स्थानकनि विषै जैसे समपाटीका आकार हो है, तेसे साड़ा सात, साड़ा सात चय स्थापि है । इहां का यंत्र है