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अंकiष्टि अपेक्षा श्रधःकरण
रचना
सोलह सम | प्रनुकृष्टिरूप एक-एक समय यनि की सवधी च्यारि च्यारि खडनि ऊर्ध्व रचना |
की तिर्यक रचना
द्वितीय
खड
२२२.
२१८
: २१४
२१०
२०६
- २०२
१६८
१६४
१६०
, १८६
१८२
१७८
१७४
१७०
१६६
१६२
प्रथम
खड
૪
५३
५२
५१
५०
૪૨
४८
४७
४६
४५
४४
४३
४२
૪
४०
५५
૫૪
५३
५२
५१
५०
VA
४८
४७
४६
४५
४४
४३
४२
४१
Ze ४०
तृतीय
खड
५६
५५
५४
५३
५२
५१
५०
૪૨
४५
४७
૪૬
૪૧
४४
४३
४२
४१
चतुर्थ
खड
५७
५६
५५
५४
५३
५२
५१
५०
૪૨
४८
४७
४६
४५
४४
४३
४२
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४६
संप्टि अपेक्षा रचना है, सो या दृष्टि अधिकार विषे लिखेगे । तथा याका यहु अभिप्राय है - एक जीव एकै काल असा कहिए, तहां विवक्षित अधः प्रवृतकरण का परिणामरूप परिणया जो एक जीव, ताका परमार्थवृत्ति करि वर्तमान अपेक्षा काल एक समय मात्र ही है; ताते एक जीव का एक काल समय प्रमाण जानना । बहुरि एक जीव नानाकाल जैसा कहिए, तहा अधःप्रवृत्तकरण का नानाकालरूप अंतर्मुहूर्त के समय एक अनुक्रम तै जीव करि चढिए है, यातै एक जीव का नानाकाल अतर्मुहूर्त का समय मात्र है । वहुरि नानाजीवनि का एक काल अंसा कहिए, तहां विवक्षित एक समय अपेक्षा अध प्रवृत्तकाल के असंख्यात समय हैं, तथापि तिनिविपै यथासभव एक सौ आठ समयरूप जे स्थान, तिनिविषै संग्रहरूप जीवनि की विवक्षा करि एक काल है; जाते वर्तमान एक कोई समय विषे अनेक जीव है, ते पहिला, दूसरा तीसरा आदि अध. करण के असंख्यात समयनि विषै यथासंभव एक सौ आट समय विषै ही प्रवर्तते पाइए है। ता अनेक जीवनि का एक काल एक स आठ समय प्रमाण है । बहुरि नाना
जीव, नानाकाल असा कहिए; तहा अव प्रवृत्तकरण के परिणाम असंख्यात लोकमात्र हैं, ते त्रिकालवर्ती अनेक जीव संबंधी है । बहुरि जिस परिणाम को कह्या, तिसको