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[ गोम्मटमार जीवकाण्ड गाथा ४४
इगिवितिचखचडवारं, खसोलरागठ्ठदालचउसट्ठि संठविय पमपठाणे, खट्ठद्द्द्दिट्ठे च जारण तिट्ठाणे ॥ ४४ ॥ एक द्वित्रिचतुः खचतुरष्टद्वादश खपोडशरागाष्टचत्वारिंशच्चतुःषष्टिम् । संस्थाप्य प्रमादस्थाने, नष्टोद्दिष्टे च जानीहि त्रिस्थाने ||४४ ||
टीका - प्रमादस्थानकनि विषै विकथा प्रमाद के च्यारि कोठानि विपे क्रम ते एक, दो, तीन, च्यारि अंकनि कौं स्थापि; तैसे ही कपाय प्रमाद के च्यारि कोठानि विष क्रम ते विदी, ग्राठ, वारह अंकनि को स्थापि; तैसे ही इद्रिय प्रमादनि के पंच कोठानि विषै क्रम ते विदी, सोलह, वत्तीस, अड़तालीस, चौंसठ अंकनि क स्थापि, पूर्वोक्त प्रकार हेतु तै तिन तीनों स्थानकनि विषे स्थापे जे अंक, तिनि विपे नप्ट अर समुद्दिष्ट कौं तू जानहु ।
भावार्थ - यहां भी पूर्वोक्त प्रकार तीन पंक्ति का यन्त्र करना । तहां ऊपर की पंक्ति विषै च्यारि कोठे करने, तहां क्रम ते स्त्री आदि विकथा लिखनी अर एक, दो, तीन, च्यारि, ए अंक लिखने । बहुरि ताके नीचे पक्ति विपं च्यारि कोठे करने, तहां क्रम ते क्रोधादि कपाय लिखने अरविंदी, च्यारि, ग्राऊ, वारा ए अंक लिखने । बहुरि नीचे पंक्ति विपै पाच कोठे करने, तहां क्रम ते स्पर्शनादि इंद्रिय लिखने, अरविदी, सोलह, बत्तीस, अड़तालीस, चौसठि ए अक लिखने ।
करना ।
स्त्री १
क्रोव ०
स्पर्शन O
भक्त २
मान ४
रसना १६
राष्ट्र ३
माया ८
त्राण ३२
अवनि ४
लोभ १२
चक्षु ४८
श्रोत्र ६४
स यंत्र करि पूर्वे जैसे विधान कह्या, तैसे इहां भी नप्ट, समुद्दिष्ट का ज्ञान
तहां नष्ट का उदाहरण - जैसे पंद्रहवां श्रालाप कैसा है ?
सा प्रश्न होते विकथा, कपाय, इंद्रियनि के जिस-जिस कांठा के अंक वा शून्य मिलाएं, सो पंद्रह संख्या होइ, तिस तिस कोठा को प्राप्त विकथादिक जोड़ें, राष्ट्रकथालापी-लोभी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत- निद्रालु स्नेहवान औसा तिस पंद्रहवां आलाप कीं कहँ ।