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________________ आचार्य कुन्दकुन्द / 19 अन्तर्गत थे । यह तीर्थकर महावीर का क्षेत्र था । इस कारण दीर्घकाल तक यह जैन- केन्द्र भी बना रहा । मिथिला भी तीर्थकरो की जन्मभूमि थी । मौर्यवंश के अन्तिम सम्राट् सम्प्रति ने जैनधर्म का सर्वत्र प्रचार किया । बहुत सम्भव है कि कुन्दकुन्द ने दक्षिण भारत से चलकर उसी विदेह क्षेत्र के प्रमुख जैन - केन्द्र पुण्डरीकिणी नगरी मे किन्ही भाचार्य सीमन्धर स्वामी के दर्शन किए हो । हमारी दृष्टि से उक्त पुण्डरीकिणी नगरी (जो कमलपुष्प-वाची है) वर्तमान पटना का पडरक नाम का नगर हो सकता है, जो आज भी अपने कमलपुष्पो तथा उसके कमलगट्टे एव मखानो के लिए प्रसिद्ध है। स्थिति जो भी रही हो, इस विषय पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। कुन्दकुन्द अपरनाम पद्मनन्दि की गिरनार यात्रा कुन्दकुन्द के जीवन की एक दूसरी चामत्कारिक घटना का भी उल्लेख है । उसके अनुसार वे जब विहार करते हुए गिरनार पर्वत पर पहुँचे तब वहाँ दिगम्बरो एव ध्वेताम्बरी का मेला लगा हुआ था। उसी समय दोनो सम्प्रदायो मे अपने अपने मत को प्राचीन सिद्ध करने हेतु शास्त्रार्थ हो गया । उस समय कुन्दकुन्द ने अपनी तपस्या के प्रभाव से पर्वत पर स्थापित पापाणी ब्राह्मी देवी को मुखर बना दिया था तथा उसके मुख से दिगम्बर सम्प्रदाय को प्राचीन घोषित करा दिया था। इस घटना का समर्थन आचार्य शुभचन्द्र ने भी अपने 'पाण्डवपुराण' मे किया है । प० नाथूराम प्रेमी ने इस घटना की सम्भावना को तो स्वीकार किया है किन्तु उनके मत से इसका सम्वन्ध पद्मनन्दि अपर नाम कुन्दकुन्द मे नही, वल्कि इस घटना के समक्क्ष किसी अन्य घटना का सम्बन्ध 12वी सदी के किसी अन्य पद्मनन्दि के साथ होना चाहिए । 1 जैन हितैषी 10/6-7
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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