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________________ आचार्य कुंदकुंददेव को तमिल तथा कन्नड़ भाषा भाषियों को इस कार्य के लिए प्रेरणा देना आवश्यक है। आचार्य कुन्दकुन्द के विदेह गमनविषयक अनेक ऐतिहासिक प्रमाण पृथ्वी के गर्भ में लुप्तप्राय हो गये हैं, जो कुछ प्रमाण, आगम और शिलालेख में अभी भी मौजूद हैं; उनका यहाँ उल्लेख किया जा रहा है। विक्रम संवत् दसवीं शताब्दी के देवसेनाचार्य ने दर्शनसार ग्रन्थ में लिखा है : जई पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिव्वणाणेण । ण विवोहई तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति ॥ अर्थ : यदि सीमंधर स्वामी (महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान तीर्थंकरदेव) से प्राप्त हुए दिव्यज्ञान द्वारा श्री पद्मनंदिनाथ (श्री कुन्दकुन्दाचार्य) ने बोध नहीं दिया होता तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे प्राप्त करते? बारहवीं शताब्दी के जयसेनाचार्य पंचास्तिकाय टीका के प्रारंभ में लिखते हैं : “अथ श्रीकुमारनंदिसिद्धान्तदेवशिष्यैः प्रसिद्धकथान्यायेन पूर्वविदेहं गत्वा वीतरागसर्वज्ञश्रीसीमंधरस्वामितीर्थकरपरमदेवंदृष्ट्वातन्मुखकमलविनिर्गत दिव्यवाणी श्रवणावधारितपदार्थात् शुद्धात्मतत्त्वादिसार्थं गृहीत्वा पुनरप्यागतैः श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवैः पद्मनन्द्याद्यपराभि धेयैरन्तस्तत्ववहितत्त्वगौणमुख्यप्रतिपत्यर्थमथवा शिवकुमारमहाराजा दिसंक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थ विरच्यते
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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