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________________ १ आचार्य कुंदकुंददेव ६१ अब वर्तमान काल में भी इस पर्वत पर प्रतिवर्ष मंदरपुष्प नामक उत्सव सामान्यत: जनवरी माह में मनाया जाता है। जिस प्रकार उत्तर भारत में चैत्र महीने में वर्ष का प्रारंभ मानते हैं उसी प्रकार तमिलवासी तयी मास से वर्ष का प्रारंभ मानते हैं । इस उत्सव में हजारों लोग इकट्ठे होते हैं । और आचार्य श्री की चरण पादुकाओं पर पुष्पांजलि अर्पित करके अपनी श्रद्धा-भक्ति व्यक्त करते हैं । इस पर्वत की पूर्व दिशा से तमिलनाड प्रदेश की मोटरगाड़ियां पोन्नूर रोड से आया-जाया करती हैं | उसी रास्ते पर एक विद्यार्थी निलय है । इसमें विद्यार्थी धार्मिक और लौकिक अध्ययन करते हैं। यहीं पर एक विशाल जैन मन्दिर है। उसमें तीर्थंकर आदिनाथ, सीमन्धर, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ और बाहुबली भगवान की मूर्तियाँ हैं। मंदिर की व्यवस्था उत्तम है। इस विद्यार्थी-निलय के ग्रन्थ भंडार में लगभग पाँच सौ ताड़पत्रीय ग्रंथ हैं । ये सभी ग्रंथ प्राकृत, संस्कृत भाषा में और ग्रंथिलिपि में लिखे गए हैं। प्राभृत त्रय की मूल भाषा प्राकृत, लिपि ग्रंथि और उन पर टीका तमिल भाषा में लिखी गई है | यहाँ ग्रन्थ तो संग्रह करके रखे गये हैं, पर शोध कार्य नहीं चल रहा है। यहां के कार्यकर्ताओं का कहना है कि “ग्रन्थि लिपि को जानने वाले विद्वान बहुत विरल हैं। तमिल तथा कन्नड़ प्रान्तीय संस्थाओं को आचार्य कुन्दकुन्द विषयक शोध-खोज कार्य विशेष रीति से करना आवश्यक है। इससे भूगर्भ से प्राप्त अवशेषों तथा ताडपत्रीय ग्रन्थों से प्राप्त जानकारी के आधार से कुछ नए प्रमेय हाथ लग सकते हैं। हिन्दी प्रान्तीय संस्थाओं
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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